जिन शासन के प्रभावशाली सन्तों में से एक थे दिलीपमुनिजी - निखिलशीलाजी

झाबुआ। संजय जैन-ब्यूरो। जिन शासन में चार तीर्थ में से प्रथम तीर्थ पर प्रतिष्ठित पूज्य श्री धर्मदासगण के जैनाचार्य जिन शासन गौरव पूज्य गुरुदेव उमेशमुनिजी म.सा. "अणु" के सुशिष्य व वर्तमान प्रवर्तक देव बुद्धपुत्र पूज्य श्री जिनेन्द्रमुनिजी म.सा. के गुरुभ्राता व उनके आज्ञानुवर्ती महान साधक तपस्विराज पूज्य गुरुदेव श्री दिलीपमुनिजी म.सा. का गोधरा वर्षावास हेतु लिमखेड़ा पिपलोद के मध्य विहार के दौरान असामयिक कालधर्म हो गया। वही दूसरे तीर्थ पर प्रतिष्ठित श्रमण संघ की उप परवर्तिनी पूज्या श्री आदर्शज्योतिजी म.सा. का पण्डित मरण इंदौर में हो गया। एक ही दिन में दो महान साधक के चले जाने से जैन जगत को बड़ी क्षति पहुँची है। ऐसे में जैसे ही यह समाचार सोशल मीडिया के माध्यम से जिसने भी सुने उनके पार्थिव शरीर के अंतिम दर्शन को वे दौड़ पड़े। वही अनेक संघों में धर्म आराधना के माध्यम से उनके गुणों का स्मरण किया गया।        

 गुणनानुवाद सभा का आयोजन किया गया थां

दला में विराजित सरलता की प्रतिमूर्ति पूज्या महासती श्री निखिलशीलाजी म.सा., पूज्या श्री दिव्यशीलाजी (माताजी) म.सा., पूज्या श्री प्रियशीलाजी म.सा. एवं पूज्या श्री दीप्तिजी म.सा. के पावन सानिध्य में पूज्य श्री धर्मदास गण परिषद के राष्ट्रीय व थांदला श्रीसंघ के अध्यक्ष भरत भंसाली की मौजूदगी में महान साधकों के लिए गुणनानुवाद सभा का आयोजन किया गया।   वाणी जन-जन को आकर्षित करती थी.. इस दौरान धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए पूज्या श्री निखिलशीलाजी म.सा. ने कहा कि तीर्थंकर भगवान के समय से उनके शासन में अनेक परिवार दीक्षित हुए है आज भी वह परंपरा चल रही है ऐसे में आदर्शज्योतिजी के (भंडारी) परिवार से भी कई आत्माओं ने संयम लेकर अपना जीवन धन्य बनाया है। आपका जीवन व वाणी जन-जन को आकर्षित करती थी। यह आपके पुण्य का प्रताप है। आपने डूंगर मालवा के अलावा सुदूर क्षेत्रों में जाकर भी धर्म की प्रभावना की। जनमानस पर आदर्श नाम को चरितार्थ करते हुए आपके आदर्श जीवन से अनेक जनों ने अपने जीवन को रूपांतरित किया है। आपश्री ने कहा वाचनी के दौरान पहले यह समाचार प्राप्त हुआ फिर दूसरा समाचार की तपस्विराज नही रहे। यह समाचार मन को बेचैन कर गया व कुछ देर तक स्तब्धता मौन छा गया। यह घटना सुनकर एक दूसरे को दिलासा देने लगे,परन्तु व्याकुलता ने लंबा समय लिया।    

महान तपस्वी व स्वाध्याय प्रेमी थे

आप पूज्य श्री दिलीपमुनिजी म.सा. सांसारिक काल में भी महान तपस्वी व स्वाध्याय प्रेमी थे। आप करीब 25 वर्षों से एकान्तर (वर्षीतप) कर रहे थे वही पारणें में भी सीमित द्रव्य कड़ाई विगय पर आपने विजय प्राप्त कर रखी थी यही कारण है कि आपके निर्मल चारित्र का प्रभाव आपकी वाणी से झलकता था तभी आपके कहने मात्र से अनके आत्माओं ने भी तप आराधना से अपने कर्मो की कोड़ को खपाया है। शरीर से आपको कोई ममत्व नही था तप से अपनी काया को इतना क्रश कर लिया था जो वर्तमान में आपको देखकर स्वतः पता लग जाता था। पूज्याश्री ने कहा कि आपने जाने के लिए दिन भी पक्खी का चूना जिस दिन संघ में अनेक भव्य आत्मा तप स्वाध्याय में ही लीन रहते है। धर्मसभा में पूज्याश्री दीप्तिजी म.सा. ने बंधन तोड़ के उड़ गया रे अविनाशी आत्मा स्तवन के माध्यम से अपने भाव व्यक्त किये।      

 व्यसनों में आसक्त युवा व्यसन को छोड़ देते थे                      

पूज्य श्री धर्मदास गण परिषद व थांदला संघ की ओर से दिलीपमुनिजी के गुणों का स्मरण करते हुए भरत भंसाली ने कहा कि 2009 में आपने करोड़ो की दौलत, भरा पूरा परिवार व अनेक समाजिक संस्थाओं के बड़े पदों को त्याग कर गुरु चरणों में संयम लेते ही तप स्वाध्याय में अप्रमत्त बनकर अपना जीवन सबके लिए प्रेरणादायी बना लिया था। आपकी वाणी का प्रभाव ऐसा था कि व्यसनों में आसक्त युवा व्यसन को छोड़ देते थे, दिखावों में जी रहे लोग अपनी दिशा बदल लेते थे तो फैशन व प्रदर्शन में रहने वाली महिलाओं का समूह धर्म आराधना में लग जाता था। आपके पुण्य का प्रभाव ही है कि अनेक संत व जनमानस आपको वचनसिद्ध साधक कहते थे।पूज्य श्री सन्दीपमुनिजी ने तो यहाँ तक कह दिया कि आप की वचन सिद्धि ऐसी थी कि बीमार भी मासक्षमण जैसी दीर्घ तपस्या कर ले। भंसाली ने कहा 2019 में आपका स्वतंत्र चातुर्मास खिरकिया में हुआ था तब आराधना के क्षेत्र बड़े व जन मानस में नई ऊर्जा का संचार हुआ था। इस तरह  आपकी प्रतिभा का जिन शासन को दोहरा लाभ मिला। आपके तप संयम व ओजस्वी वाणी का प्रभाव ही था कि रतलाम इंदौर जैसे महानगरों में भी तपस्या के ठाठ लग गए थे। आज हमने एक ऐसे जीवंत सम्पर्क वाले संत को खो दिया है।यह जिन शासन में कभी न भरने वाली क्षति है। आपने कहा कि पूज्या महासती आदर्शज्योतिजी का भी गण के पदाधिकारियों संग हाल ही में दर्शन लाभ लिया था।आपने भी पूर्ण चेतन अवस्था में आपने अंतिम मनोरथ को सिद्ध किया है। आपभी एक महान साधक आत्मा रही है। आपका थांदला ननिहाल भी रहा है ऐसे में आपका यहाँ के संघ पर विशेष वात्सल्य भी रहा है। आपका एक भव्य चातुर्मास भी थांदला में हुआ है। ऐसी दो महान साधक आत्माओं से जिन शासन रिक्त हुआ है यह बड़ी हानि है लेकिन साधक उनके जीवन से प्रेरणा लेकर आपने जीवन को उन्नत बनाये तो यही उनके उपकारों व श्रम की सार्थकता हो कर उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

इन्होंने किया साधक आत्माओं के गुणगान        

धर्म सभा में वरिष्ठ सदस्य रजनीकांत शाहजी, स्वाध्यायी वीरेन्द्र मेहता ने भी अपने कथन से दिवंगत साधक आत्माओं के गुणगान किये। गुणानुवाद सभा का संचालन संघ सचिव प्रदीप गादिया ने किया व आभार मानते हुए उक्त जानकारी संघ प्रवक्ता पवन नाहर ने दी।।