प्रदेश की राजनीतिक और प्रशानिक नोक झोंक पर संघर्ष से सिद्धि की विशेष रिपोर्ट सह संपादक संजय जैन की कलम से
वन विभाग में मेरी कोई सुन नही रहा,अथ पौधापुराण-नाम तो मनीष सिंह का ही आएगा-कुत्तों को मतलब नहीं इंदौर के नंबर वन से-फोटो जर्नलिस्ट की सजगता से जान बची-नंबर वन के हीरो तो पर्दे के पीछे ही रह गए-नाटक बन रही जनसुनवाई
अथ पौधापुराण
इंदौर/झाबुआ।संजय जैन-सह संपादक। शिवराज सरकार के वक्त अपनी मांगों की सुनवाई नहीं होने पर,शोले के हाथ कटे ठाकुर वाली बात कहते रहने वाले विजयवर्गीय ही थे। मंत्री कैलाश विजयवर्गीय इतने भी कमजोर तो नहीं कि जिसकी तरफ वे नजर घुमा दें,वो अपनी जेब से 51 हजार तो क्या एक लाख पौधे भी खरीद कर ले आए साथ ही बाकी सारे इंतजाम भी कर दे। फिर इन्होंने ऐसा क्यों किया कि,जो मंत्रालय खुद सीएम के पास है, उसी विभाग की शिकायत सीएम से करने की हिम्मत भी दिखा दी।
वन विभाग में मेरी कोई सुन नही रहा
कांग्रेस से भाजपा में आए रामनिवास रावत के पास वन विभाग था,लेकिन उप चुनाव में उनकी हार के बाद से वन विभाग भी सीएम के पास ही है। कुशल राजनेता माने जाने वाले विजयवर्गीय को यह पता नहीं हो,ऐसा संभव ही नहीं.... फिर उन्होंने सीएम को ही क्यों कहा कि वन विभाग में मेरी कोई सुन नही रहा है, आप 51 हजार पौधों के लिए कह कर जाइये।
नाटक बन रही जनसुनवाई
सरकार तो चाहती है जनसुनवाई में ही लोगों की समस्या का त्वरित निराकरण हो जाए लेकिन जिले की तरह प्रदेश के अधिकांश जिलों में यह पूरी तरीके से औपचारिकता बनकर रह गई है। कई बार तो अधिकारियों द्वारा जनसुनवाई में बदलसूकी तक की जाती है। हरदा में ग्राम ताजपुरा के बुजुर्ग भागवत सिंह जमीन विवाद की शिकायत लेकर कई बार आए, लेकिन उनकी समस्या हल नहीं हुई तो कलेक्टर की जनसुनवाई में आते ही सभाकक्ष में फर्श पर बैठ गए। वह अधिकारियों से अपनी जमीन दिलाने की मांग करने लगे। अधिकारियों ने उनकी बात सुनने की बजाय उन्हें जनसुनवाई कक्ष से बाहर निकाल दिया।
नाम तो मनीष सिंह का ही आएगा
कुछ अधिकारी अपने काम से ऐसा इतिहास भी रच जाते हैं,जिसे चाह कर भी भुलाया नहीं जा सकता। आइएएस मनीष सिंह निगमायुक्त और कलेक्टर रहते इंदौर में ऐसा ही कुछ कर गए हैं। महापौर रहीं मालिनी गौड़ को यदि इंदौर का पहला स्वच्छता अवार्ड दिलाने का श्रेय दिया जाता है तो उसके पीछे निगमायुक्त मनीष सिंह रहे थे। कलेक्टर बने तो वे बायो सीएनजी का वह प्लांट स्थापित करा गए जिसकी बदौलत आठवीं बार भी इंदौर नंबर वन रहा है। जहां तक इस प्लांट की स्थापना की बात है तो जब इसकी स्थापना के लिए भारी भरकर राशि का खुलासा हुआ था। उस वक्त आज के उन कई जनप्रतिनिधियों ने माल खाने जैसे आरोप भी उछाले थे, जो अब अवार्ड का जश्न मनाने में आगे हैं।
कुत्तों को मतलब नहीं इंदौर के नंबर वन से
स्वच्छता सर्वेक्षण में इंदौर सतत आठवीं बार इंदौर नंबर वन रहा है, लेकिन लगता है शहर के आवारा डॉग को इसकी खुशी जरा भी नहीं है। शायद ही कोई दिन जाता हो जब शहर में कहीं ना कहीं डॉग बाइट की घटना नहीं होती हो। ऐसी घटनाओं को रोकने की गंभीरता नगर निगम ने दिखाई नहीं, शायद इसीलिये स्ट्रीट डॉग को ऐसे किसी अवार्ड की खुशी भी नहीं है। रही निगम अमले की बात तो उन्हें कौन समझाए कि सतत अवार्ड के बाद अंतराष्ट्रीय पटल पर इंदौर की जो रैंकिंग बढ़ी है, उसको चिंदे-चिंदे करने में ऐसी घटनाएं देर नहीं लगाती।
फोटो जर्नलिस्ट की सजगता से जान बची
हाटपीपल्या गांव की आशाबाई पति धर्मेंद्र बागरी जमीन विवाद को लेकर त्रस्त हो गई थी। देवास में कलेक्टर ऋतुराज सिंह के पास फरियाद लेकर पहुंची थी। जब वे कलेक्टोरेट की छत से कूदने ही वाली थी कि फोटो जर्नलिस्ट मयूर व्यास की महिला पर नजर पड़ी और उन्होंने एकदम से दौड़ कर उसे रोक लिया । उनकी उस सजगता से महिला की जान तो बच गई, लेकिन देवास प्रशासन की उदासीनता भी चर्चा का विषय बन गई है।
नंबर वन के हीरो तो पर्दे के पीछे ही रह गए
अपर आयुक्त अभिलाष सिंह उन अधिकारियों में से हैं जो अपने काम से मतलब रखते हैं। आठवीं बार इंदौर के नंबर वन रहने के हल्ला हो हल्ला… पर्दे के पीछे उनकी बायो सीएनजी और नेफ्रा प्लांट पर सतत मॉनिटरिंग और निगमायुक्त शिवम वर्मा का उनके प्रति विश्वास का ही परिणाम है।दिल्ली में अवार्ड सेरेमनी के मंच पर जब वो नजर नहीं आए ,तो स्वच्छता अभियान से जुड़े नगर निगम अमले को निराशा भी हुई।मायूस स्टॉफ को यह बाद में पता चला कि राष्ट्रपति के प्रोटोकॉल के चलते विभागीय मंत्री, महापौर और निगमायुक्त ही मंच पर पहुंचे थे।