शोक सभाओं पर विशेष मन की बात....पर संघर्ष से सिद्धि की संजय जैन-सह संपादक की कलम से....
शोक सभाओं का हो रहा दुर्भाग्यपूर्ण आयोजन-शोक की भावना कम, और दिखती है प्रदर्शन की प्रवृत्ति ज्यादा...
झाबुआ संजय जैन-सह संपादक। शोक सभाएं आजकल दुःख बांटने और मृतक के परिवार को सांत्वना देने के अपने मूल उद्देश्य से लगभग भटक ही गईं हैं। शोक सभाओं के आयोजन के लिए विशाल मंडप लगाए जा रहे हैं। सफेद पर्दे और कालीन बिछाई जाती है या किसी बड़े बैंक्वेट हाल में भव्य सभा का आयोजन किया जाता है।
शोक की भावना कम, और प्रदर्शन की प्रवृत्ति ज्यादा...
इससे यह लगता है कि कोई बड़ा उत्सव हो रहा है। इसमें शोक की भावना कम, और प्रदर्शन की प्रवृत्ति ज्यादा दिखाई देती है। मृतक का बड़ा फोटो सजाकर भव्यता के माहौल में स्टेज पर रखा जाता है। यहां तक कि मृतक के परिवार के सदस्य भी अच्छी तरह सज-संवरकर आते हैं,उनका यह आचरण और पहनावा किसी दुःख का संकेत ही नहीं देता है। बल्कि ऐसा लगता है कि मानो जाने वाले से उसका पिण्ड छूट गया।
देखा-देखी की होड़ सी चल रही...
समाज में अपनी प्रतिष्ठा दिखाने की होड़ में अब शोक सभा भी शामिल हो गई है। सभा में कितने लोग आए, कितनी कारें आईं, कितने नेता पहुंचे, कितने अफ़सर आए - इसकी चर्चा भी खूब होती है...? नेताओं द्वारा प्रेषित शोक संदेश को ऐसे पढ़ा जाता है मानो उनको ही सारा दुख हुआ है,जबकि हकीकत में वे मृतक के कभी काम आये ही नही होते है। ये सब परिवार की सामाजिक प्रतिष्ठा के आधार बन गए हैं। उच्च वर्ग को तो छोड़िए, छोटे और मध्यमवर्गीय परिवार भी इस अवांछित दिखावे की चपेट में आ गए हैं। शोक सभा का आयोजन अब आर्थिक बोझ बनता जा रहा है। कई परिवार इस बोझ को उठाने में कठिनाई महसूस करते हैं, पर देखा-देखी की होड़ में वे न चाहकर भी अधिक व्यय करने के लिए मजबूर होते हैं।इस आयोजन में खाना, चाय, कॉफी, मिनरल वाटर, जैसी चीजों पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है। यह पूरी सभा अब शोक सभा की बजाय एक भव्य आयोजन का रूप ले रही है।
समय सिर्फ और सिर्फ मौन प्रार्थना करने का...
आपको बता दे कि शोकसभा में जब जाते हैं,तब लगता ही नहीं कि किसी शोकसभा में आए हैं साथ ही रीति रिवाज उठावने की बजाय नए-नए रिवाज बनने लगे हैं।कोई कविता पढ़ रहा है,गीत सुनता है और कोई भाषण देकर अपनी शाब्दिक विशेषता दर्शा रहा होता है।अंतिम क्रिया के समय शमशान में भी भाषण का दौर चलता है,जबकि वो समय सिर्फ और सिर्फ मौन प्रार्थना करने का ही होता है । संघर्ष से सिद्धि की सभी से करबद्ध विनम्र निवेदन है कि शोक सभाओं को अत्यंत सादगीपूर्ण और आडंबर रहित ही करे।