कानूनी प्रक्रिया जटिल होने से मिलावट खोरी पर नहीं लग पा रहा है अंकुश

खाद्य पदार्थों के ११ प्रतिशत नमूनों में मिलावट,स्वास्थ्य से खिलवाड़-जूस केवल फ्लेवर और रंग का ही खेल
झाबुआ/इंदौर। संजय जैन-सह संपादक। अपमिश्रण के खिलाफ तमाम प्रभावी अभियानों दावों के बावजूद जिले में नियंत्रण नहीं हो पा रहा है। बीते वित्तीय वर्ष में नमूनों के संग्रहण और विश्लेषण की रिपोर्ट इसी ओर इशारा करती है। संकलित नमूनों की जांच में ११ प्रतिशत से अधिक अमानक पाया जाना इसका प्रमाण है।
सामान्य बात है दूध,पनीर और मावा में मिलावट
दुग्ध एवं उसके उत्पादों खास तौर से पनीर और मावा में मिलावट सामान्य बात है। दूध का व्यवसाय करने वाले ७० प्रतिशत लोग हाइड्रो पेरोक्साइड का उपयोग तो दूध को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए करते ही हैं,अन्य मिलावट भी करते हैं। मिलावट के विरुद्ध कार्रवाई का कानून इतना प्रभावी नहीं है। एक अप्रेल २०२४ से ३१ मार्च २०२५ तक जिले में कुल १४४ खाद्य पदार्थों के नमूनों का विश्लेषण राज्य स्तरीय लैब से कराया गया। इनमें ११ नमूने अमानक पाए गए। जो कुल विश्लेषित नमूनों का करीब ११ प्रतिशत हैं। हालांकि ०३ प्रतिष्ठानों के खिलाफ रजिस्ट्रेशन निलंबन करने की कार्रवाई भी की गई,लेकिन इसके बावजूद अपमिश्रण कम नहीं हो रहा है।
स्वास्थ्य से खिलवाड़
फ्लेवर वाले जूस में शामिल तत्व सेहत के लिए हानिकारक हो सकते हैं। इनमें आर्टिफिशियल स्वीटनर, प्रिजर्वेटिव और रंग शामिल होते हैं, जो पाचन तंत्र, किडनी और हृदय पर बुरा असर डाल सकते हैं। ये जूस एसिडिटी, गैस और पेट दर्द का कारण बन सकते हैं। इन्हें लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए प्रिजर्वेटिव का इस्तेमाल किया जाता है,जो किडनी के लिए नुकसानदायक हो सकता है। कुछ जूस में आर्टिफिशियल रंग भी मिलाए जाते हैं। फ्लेवर वाले जूस में अक्सर चीनी की मात्रा अधिक होती है,जो वजन बढ़ाने,डायबिटीज और हृदय रोग जैसी समस्याओं का कारण बन सकती है। ऐसे जूस का सेवन बहुत सीमित मात्रा में ही करना चाहिए। इसकी जगह घर पर ताजे फलों से बना जूस पीना अधिक सुरक्षित और फायदेमंद होता है।
जूस केवल फ्लेवर और रंग का ही खेल
वर्तमान में आम का भाव १२० रुपए प्रति किलो से अधिक है। आम तौर पर एक गिलास शुद्ध आम के जूस के लिए १०० ग्राम आम,चीनी,बर्फ और थोड़ा सा पानी जरूरी होता है। इस हिसाब से सिर्फ सामग्री की लागत ही करीब २० रुपए आती है। ऐसे में १० रुपए में बिक रहा आम का जूस शक के दायरे में है। जूस विक्रेता तो नींबू का एक गिलास शरबत २० रुपए में बेचते हैं। जबकि आम का शुद्ध जूस तो इससे कहीं ज्यादा महंगा पड़ता है। ऐसे में १० रुपए में आम का जूस केवल फ्लेवर और रंग का ही खेल है।
आम से कोई लेना-देना नहीं
जानकार बताते हैं कि बाजार में सस्ते जूस के नाम पर कृत्रिम आम फ्लेवर और रंगों का घोल तैयार किया जा रहा है,जिसे बर्फ और मीठे पानी के साथ मिलाकर आम का जूस के नाम से बेचा जा रहा है। यह जूस पीने में स्वादिष्ट तो होता है लेकिन इसका आम से कोई लेना-देना नहीं होता।
फैक्ट फाइल
१४४ -लीगल नमूने लिए गए साल भर में।
१०९- नमूनों का विश्लेषण हुआ राज्य लैब में।
११- नमूने अमानक पाए गए जांच के दौरान।
१५- मामले एडीएम न्यायालय में लगाए गए हैं।
१५- प्रकरणों में फैसला।
८० हजार रुपए- हुआ न्यायालय से जुर्माना।
३५ हजार रुपए ही -जमा हो पाया है अर्थदंड।
उचित कार्यवाही करेंगे
जल्द ही दुग्ध एवं उसके उत्पादों और मिठाई व्यापारियों के प्रतिष्ठानों की जिले में जांच कर उचित कार्यवाही करेंगे, माल सुपुर्दगी में देना नियम है। संस्थानवार अमानक सैंपल की रिपोर्ट अलग-अलग दिनों में आने से जारी नहीं करते। कोशिश करेंगे,ऐसी सूची जारी हो। जांच की सब स्टैंडर्ड रिपोर्ट पर कानूनी कार्रवाई प्रक्रिया के तहत की जाती है।
राहुल अलावा- खाद्य सुरक्षा अधिकारी, झाबुआ