बिहारी जू-मंदिर टीकमगढ़ का मामला..भगवान को जमीन का हक मिला, जिसे दफन कर दिया गया अधिनियम से..

सरकार बिहारी लोक का प्लान बनाए तो जमीन के जादूगरों से बचा रहेगा मंदिर क्षेत्र...
झाबुआ/ इंदौर। संजय जैन-सह संपादक। टीकमगढ़ कलेक्टर विवेक क्षोत्रिय की सूझबूझ का ही नतीजा है कि भगवान को उनकी 2.36 एकड़ जमीन वापस मिल गई।वरना तो जमीन के जादूगरों द्वारा इस बेशकीमती जमीन पर प्लॉट काटने के बाद लोगों ने तो मकान बनाना भी शुरु कर दिए थे। जकड़ ही जिला प्रशासन टीकमगढ़ के इस बिहारी जू मंदिर की जमीन पर बने मकान ध्वस्त करने की कार्रवाई शुरु करेगा। कलेक्टर ने तो विन्ध्य प्रदेश मालगुजारी अधिनियम 1953 के अध्ययन के बाद भगवान की यह करीब 2500 करोड़ मूल्य की जमीन बचा ली है। फिर किसी जमीन के जादूगर की नजर ना लगे इसके लिये मुख्यमंत्री यदि महाकाल लोक की तरह यहां बिहारी लोक जैसे प्रोजेक्ट को मंजूरी दें तो टीकमगढ़ की आर्थिक प्रगति में भी मदद मिल जाएगी।
की थी याचिका दायर,जबलपुर हाई कोर्ट में...
जबलपुर हाई कोर्ट में स्वदेश रावत ने बिहारी जू मंदिर की जमीन को लेकर याचिका दायर की थी । हाइकोर्ट ने टीकमगढ़ कलेक्टर को संपूर्ण मामले की जांच के साथ ही बोलता हुआ आदेश पारित करने के निर्देश दिए थे।जांच के बाद कलेक्टर जो आदेश जारी किया है उसमें जमीन बेचने और खरीदने के मामले में रसूखदार राजेंद्र कुमार अध्वर्यु, रविंद्र कुमार अध्वर्यु, राजाराम राय और अंशुल जैन के नाम सामने आए थे।
तीन साल पहले हुआ अध्वर्यु परिवार के नामो को दूसरी बार जोड़ने का खेल...
2022 में तत्कालीन प्रशासनिक अधिकारियों की जाने क्या मजबूरी रही होगी कि तत्कालीन एसडीएम सीपी पटेल द्वारा तत्कालीन कलेक्टर सुभाष द्विवेदी से अनुमति लेकर आदेश जारी कर वापस पुजारी परिवार के उत्तराधिकारियों राजेंद्र कुमार अध्वर्यु, रविंद्र कुमार अध्वर्यु के नाम जोड़ दिए गए थे। बाद में इन्हीं लोगों ने राजाराम राय और अंशुल जैन को यह जमीन बेच दी थी।
कैसे हुआ खेल, ऐसे समझिये...?
टीकमगढ़ नगर के मध्य में स्थित मंदिर बिहारी जू के नाम वर्ष 1944 में 2.36 एकड़ ज़मीन अभिलेखों में दर्ज थी।मंदिर के नाम के साथ -साथ पुजारियों का नाम भी प्रबंधन के दृष्टिकोण से भूमि के इस रिकॉर्ड में दर्ज था।
-वर्ष 1959 में अभिलेखों में मंदिर का नाम विलोपित होकर केवल अधर्व्यु परिवार के पुजारियों का नाम शेष रह गया।
-वर्ष 1959 से लेकर 2023 तक भूमि पर पुजारियों के फ़ोती नामांतरण होते रहे।।
-2023 में अधर्व्यु परिवार ने राजाराम राय नामक व्यक्ति को यह ज़मीन विक्रय कर दी उसने इस जमीन पर अवैध कॉलोनी का निर्माण कर लिया।
-याचिकाकर्ता स्वदेश रावत ने अवैध कॉलोनी को लेकर हाई कोर्ट में आवेदन दिया। हाई कोर्ट के निर्देश पर कलेक्टर टीकमगढ़ द्वारा मामले की सुनवाई की गई।
-कलेक्टर ने 23 मई को अपने आदेश में यह पाया की 1959 के पहले जब मध्यप्रदेश राज्य का गठन नहीं हुआ था तब प्रचलित विन्ध्य प्रदेश मालगुजारी अधिनियम 1953 के प्रावधानों में भी ऐसा कोई प्रावधान नहीं था ₹,जिससे यह संभव हो सके कि मंदिर की मूर्ति पुजारी को हक़ त्याग कर सके। मूर्ति को क़ानून में अबोध बालक माना गया है । इसलिए उसके हक़ को किसी भी तरह से कम नहीं किया जा सकता था।पुजारी का काम केवल मंदिर का प्रबंधन था,उसे भूमि का हक नहीं मिल सकता था ।
-कलेक्टर टीकमगढ़ ने 1944 के अस्सी वर्ष बाद वापस मूर्ति बिहारी जू का नाम अभिलेखों में दर्ज करने का आदेश दिया।
-वर्ष 1959 से आज दिनांक तक हुए सारे नामांतरणों को शून्य घोषित किया गया।
-कलेक्टर विवेक क्षोत्रिय ने तहसीलदार को भूमि का क़ब्ज़ा मंदिर के हक़ में लेने के आदेश के साथ ही अवैध कॉलोनाइजर के विरुद्ध एफ़आइआर के निर्देश भी दिए है ।