कल श्री ललितमुनिजी की बड़ी दीक्षा सआनन्द हुई सम्प

अब कहलायेंगें ललितमुनिजी महाव्रतधार
झाबुआ/कल्याणपुर।संजय जैन-सह संपादक। जिन शासन में संयम व तप को कर्म निर्जरा का माध्यम माना गया है। ऐसे में जहाँ जैन समाज में अनेक आत्माओं ने तप के सहारे कर्म भेदने का पुरुषार्थ किया व कर रही है,वही दुष्कर संयम के मार्ग पर आरूढ़ होने वाले साधक भी विरले ही होते है। अक्षय तृतीया 30 अप्रैल 2025 पर थांदला में दिक्षित ललितमुनिजी (सांसारिक नाम - ललित भंसाली) की बड़ी दीक्षा का भव्य महोत्सव कल झाबुआ ज़िलें के कल्याणपुरा में सम्पन्न हुआ।
जिन शासन गौरव प्रवर्तक श्री जिनेंद्रमुनिजी ने श्री ललितमुनिजी की बड़ी दीक्षा सआनन्द सम्पन्न करायी
जिन शासन गौरव जैनाचार्य पूज्य श्री उमेशमुनिजी म.सा. "अणु" के अंतेवासी शिष्य पूज्य श्री धर्मदासगण के नायक महान साधक बुद्धपुत्र प्रवर्तक श्री जिनेंद्रमुनिजी ने कल नवदीक्षित पूज्य श्री ललितमुनिजी को बड़ी दीक्षा विधि सम्पन्न करवाते हुए छः जीव निकाय के भेद का विस्तृत ज्ञान देकर उनकी यातना के उपाय बताते हुए 5 महाव्रतों के प्रत्याख्यान ग्रहण करवाये। प्रवर्तक श्री ने कथानक के माध्यम से 4 प्रकार के साधक बताते हुए कहा कि जैसे 4 बहुओं को 5-5 शाल के दाने दिए गए। जिनमें से पहली बहु ने उन्हें फैक दिए, दूसरी बहु ने प्रसाद समझ खा लिए तीसरी बहु ने सम्भाल कर रख दिये व चौथी बहु ने उन्हें बो दिए इसी तरह साधकों को भी संयम लेने के बाद 5 महाव्रतों को ग्रहण करवाया जाता है। इसमें पहले प्रकार के साधक मन की परिणाम धारा बिगड़ने पर उन्हें त्याग देते है, दूसरे प्रकार के साधक संयम का मतलब अच्छा खाना-पीना गोचरी आदि समझ लेते है, तीसरे प्रकार के साधक उसे बराबर पालते है जबकी चौथे प्रकार के साधक उन महाव्रतों को निर्मल पालने के साथ उनमें वृद्वि करते हुए अपना हित साध लेते है, ये चौथे प्रकार के साधक आचार्य आदि होते है जो स्वयं महाव्रतों को पालते है व अन्य साधकों के पालन में सहयोगी बनते है। इस प्रकार ललितमुनिजी भी महाव्रतों को निर्मल पालन करते हुए उनमें वृद्वि करते हुए अपने लक्ष्य को प्राप्त करें।
ललितमुनिजी के गुरु अतिशयमुनिजी की हित शिक्षा-योद्धा की तरह पूर्ण सावधानी रखना चाहिए
कल बड़ी दीक्षा समारोह में उपस्थित धर्मसभा में पूज्य श्री अतिशयमुनिजी ने कहा कि भरत व ऐरावत क्षेत्र में पहले व अंतिम तीर्थंकर भगवान के समय दो प्रकार के चारित्र रहते है। जिनमें से आज ललितमुनिजी को दूसरा छेदोपस्थापनिय चारित्र ग्रहण करवाया गया। सामयिक चारित्र व छेदोपस्थापनिय चारित्र में भेद बताते हुए पूज्य श्री ने कहा कि पहले ललितमुनिजी के केवल 18 पाप के ही त्याग थे, लेकिन आज से उन्हें 5 महाव्रतों का आरोपण हो जाने से वे महाव्रतधारी मुनि बन गए। वास्तव में यह कंटीले मार्ग से हाइवे मार्ग पर आने जैसा है, लेकिन संसारी जीव कंटीले मार्ग का कष्ट उठाकर भी हाइवे पर आना नही चाहता,परन्तु दुर्लभता से कोई आत्मा इस पर चलने को तैयार होती है। ऐसे में उन्हें एक योद्धा की तरह पूर्ण सावधानी रखना चाहिए। पूज्यश्री ने योद्धा के उदाहरण से नवदीक्षित को हित शिक्षा देते हुए कहा कि जैसे योद्धा युद्ध की तैयारी करता है, योजना बनाता है व अपने शत्रु पर नजर रखता है, वैसे ही संयम रण में भी मोह शत्रु आक्रमण करेगा ही,परन्तु यदि हमारी तैयारी है तो हम उसे परास्त कर सकते है। पूज्य श्री ने कहा अप्रमत्त भावों से क्षमा, विनय, सरलता व संतोष रूपी चार गुणों के विकास से कर्म शत्रु को परास्त किया जा सकता है। अपने पुण्य के फल से हमें ऐसे अप्रमत्त साधक गुरूदेव पूज्य श्री उमेशमुनिजी को पाया है ,इसलिए दुर्लभता से मिले संयम का मोल पहचान कर उन्हें आत्म लक्ष्य में रखकर उनके जैसी अप्रमत्त साधना के प्रयास करना है। जिससे हमारा लक्ष्य भी शीघ्र प्राप्त हो सके।
महाव्रतों को गुरुदेव से ग्रहण किया
इस अवसर पर संयम प्रभाविक महासती संयमप्रभाजी आदि सतियों ने पूज्यश्री ललितमुनिजी के महाव्रतों के आरोपण पर महाव्रतों को गुरुदेव से ग्रहण किया।सुखकार - सुपालु इन महाव्रतों को भव भव से पार आदि छंद से नूतन दीक्षित के भाव को बढ़ाया। इस अवसर पर पूज्या महासती का दीक्षा दिवस होने से सभी संघजनों ने उन्हें संयमी जीवन की शुभकामनाएं देते हुए उज्ज्वल भविष्य की कामना की।
कल्याणपुरा श्रीसंघ का किया आत्मीय सत्कार
वनांचल में कल्याणपुरा श्रीसंघ की गुरुभगवंतों के प्रति गुरुभक्ति जग जाहिर है। यही कारण है कि गुरुभगवंतों का स्नेह आशीर्वाद व वात्सल्य भाव भी संघजनों पर सदैव बरसता रहता ह। ऐसे में अन्य संघों की विनन्ति होने के बावजूद बड़ी दीक्षा का लाभ कल्याणपुरा श्रीसंघ को मिला। सकल श्रीसंघ, महिला मंडल व नवयुवक मंडल ने संघ अध्यक्ष सुनिल धोका के नेतृत्व में मध्यप्रदेश के डूंगर, मालवा, निमाड़, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र आदि राज्यों से आने वालें गुरुभक्तों के आत्मीय स्वागत में कोई कसर नही छोड़ी। प्रातः नवकारसी से लेकर धर्मसभा स्थल व भोजनशाला में तपस्वियों के लिए बैठक व्यवस्था अन्य गुरुभक्तों के लिए उचित व्यवस्था की गई। आत्मीय सत्कार का लाभ अनिल कुमार शांतिलाल श्रीमाल परिवार ने लिया वही अरुण छाजेड़ ने धर्मसभा का संचालन किया।
इनके रहते धर्मसभा का गौरव बड़ा- जिनवाणी का रसपान करते हुए मांगलिक भी श्रवण की
चतुर्विद धर्मसभा में अखिल भारतीय पूज्य श्री धमर्दास गण परिषद के अध्यक्ष व पूज्य श्री ललितमुनिजी के सांसारिक बड़े भ्राता भरत भंसाली, महामंत्री शैलेश पीपाड़ा, गण संरक्षक चंद्रप्रकाश बोकड़िया, स्वाध्यायी मंगलेश श्रीश्रीमाल, अतिशयमुनिजी के सांसारिक वीर पिता दिलीप गौलेछा, यशस्वी महासती के सांसारिक वीर पिता मनीष शाहजी, मेघनगर स्थानकवासी संघ के रवि सुराणा,पंकज वागरेचा,अनूप भंडारी झाबुआ के स्थानकवासी संघ अध्यक्ष प्रदीप रुनवाल, पूर्वेश कटारिया, वरिष्ठ पत्रकार संजय जगावत,कुशलगढ़ संघ के वरिष्ठ प्रकाशचंद्र नाहटा, लिमड़ी संघ अध्यक्ष राजू भाई व बाबूलाल कर्णावट, बड़ौदा संघ के सुनील जैन, बदनावर संघ अध्यक्ष सुरेंद्र मूणत, वर्धमान संघवी, देवेंद्र बोकड़िया, उमरावमल चौपड़ा, युवा संगठन पूर्व अध्यक्ष प्रावीण जैन, रायपुरिया संघ के अनिल मुथा, थांदला युवा मंडल अध्यक्ष रवि लोढ़ा, पवन नाहर, ललितमुनिजी के सांसारिक वीर माता तारा भंसाली, वीर पत्नी संध्या भंसाली, वीर भाई अनिल भंसाली, वीर बेटा प्रांजल भंसाली सहित भंसाली परिवार व ललितमुनिजी के सांसारिक मित्रगण व सैकड़ों गुरुभक्तों ने बड़ी दीक्षा का साक्षी बन गुरुभगवंतों से जिनवाणी का रसपान करते हुए मांगलिक श्रवण की।