पिपलियाहाना तालाब इंदौर की दुर्दशा पर अलग हट कर,संघर्ष से सिद्धि की विशेष पेशकश : संजय जैन-सह संपादक की कलम से

आइए,इंदौर पिपलियाहाना तालाब से माफी ही मांग लें-नहीं करना चाहिए,जिला प्रशासन से अधिक अपेक्षा
तालाब 90 प्रतिशत सूख चुका है-अपनी पहचान और परवरिश को तरस रहा तालाब...
हिम्मत नहीं हो रही है कि सीएम को तालाब की दुर्दशा से अवगत कराएं
झाबुआ/इंदौर। संजय जैन-सह संपादक। आंखों को सुकून देने वाली यह जो आपको हरियाली नजर आ रही है,इसे पालने-पोसने वाला पिपलियाहाना तालाब,इंदौर अब,पोखर में तब्दील होता जा रहा है। जब जलस्त्रोत के आसपास धड़ल्ले से निर्माण कार्य होने लगते हैं तो झीलए नदी,कुआ हो या तालाब सब लावारिस बच्चों की तरह अपनी पहचान और परवरिश को तरसने भी लगते हैं।
तालाब 90 प्रतिशत सूख चुका है
पूर्वी क्षेत्र की पहचान इस तालाब में जून में जल स्तर कम होता था,लेकिन इस बार अप्रैल में ही इसकी हालत खराब हो गई है। आसपास के इलाकों का भू-जल स्तर बढ़ाने वाला पिपलियाहाना तालाब 90 प्रतिशत सूख चुका है । तालाब में हर दिन पांच लाख लीटर पानी देने वाला ट्रीटमेंट प्लांट भी पूरी क्षमता से नहीं चलता,वह भी ज्यादातर समय बंद ही रहता है।
समझ आ जाएगा कथनी-करनी का भेद
पानी,हरियाली और पर्यावरण की चिंता करने वाले शहर के संगठनों को स्कूल-कॉलेज के छात्रों को सीधे दम तोड़ते पिपलियाहाना तालाब जैसे जलस्त्रोतों के जीरो ग्राउंड पर ले जाना चाहिए,ताकि पानी सहेजने के संस्कार की गंभीरता,वे सभी समझ सकें। ऐसा करने से भावी पीढ़ी को मंचों से पानी बचाने का आह्वान करने और तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए होगा,जैसा ज्ञान बांटने वालों की कथनी-करनी का भेद भी उन्हें समझ आ जाएगा।
नहीं करना चाहिए, जिला प्रशासन से अधिक अपेक्षा
जिला प्रशासन से अधिक अपेक्षा इसलिए भी नहीं करना चाहिए क्योंकि उनके जिम्मे शायद सरकार की अपेक्षा पर खरा उतरना,यही एकमात्र काम है। रही शहर की जागरुकता की बात तो स्वागत,वंदन,अभिनंदन से उनको फुरसत ही नहीं मिलती है। कान्हसरस्वती नदी के पुनरुद्धार के नाम पर कितने करोड़-अरब बीते दशकों में पानी में बहा दिए ह,यह तक शहर को याद भी है ही नहीं।
मरणासन्न तालाब से नजरें चुराते हुए न्याय मंदिर में जाएंगे
वैसे तो हरियाली की चिंता करने वाला राष्ट्रीय हरित अधिकरण-एनजीटी पर्यावरण संबंधी मामलों के लिए देश में काफी सक्रिय है। हास्यास्पद तो यह भी है कि इसी तालाब के पास जिला न्यायालय का भवन भी बन कर तैयार हो रहा है। इस भवन में जब न्याय रक्षकों और फरियादियों की आवाजाही शुरु हो जाएगी,तब शायद वे सारी भीड़ भी इस मरणासन्न तालाब से नजरें चुराती हुईं न्याय मंदिर में जाएगी। न्यायालय भवन से वंचितों को तो फिर भी न्याय मिल जाएगा,लेकिन सूखा रोग से ग्रस्त तालाब एनजीटी और कोर्ट में अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ कोई भी आवाज ही शायद उठा सकेगा। वैसे तो जनहित से जुड़े मामलों में कई बार कोर्ट स्वयं संज्ञान ले लेता ह,लेकिन दम तोड़ता पिपलियाहाना तालाब रहमदिली की उम्मीद करे तो करे किससे ?
हिम्मत नहीं हो रही है कि सीएम को तालाब की दुर्दशा से अवगत कराएं
उल्लेखनीय है कि दिग्विजय सिंह के बाद डॉ.मोहन यादव ही दूसरे मुख्यमंत्री हैं,जो सर्वाधिक इंदौर आते रहते हैं। साथ ही इंदौर से दो मंत्री भी सरकार में शामिल हैं। एक नगरीय प्रशासन मंत्री और दूसरे जल संसाधन मंत्री। हां में हां मिलाने की प्रवृति जब परंपरा में तब्दील हो जाती है, तब जल, जंगल, जमीन की चिंता करने वालों की आवाज नहीं सुनी जाती है। उज्जैन में 2028 के सिंहस्थ में क्षिप्रा से सतत पानी मिलता रहे,मुख्यमंत्री के इस सपने को पूरा करने में जी जान से जुटे तकनीकी के जानकारों की भी हिम्मत नहीं हो रही है कि सीएम को इंदौर के इस तालाब की दुर्दशा से अवगत कराएं।
औचक निरीक्षण करने की सरकार को याद आ जाय
गौरतलब है कि मीडिया संगठनों के और जल विशेषज्ञों के साथ चिंतन करने वाले स्वैच्छिक संगठनों को भी अपनी उपलब्धियों की गौरव गाथा सुनाने से फुरसत मिले तब तो उनको मौका मुआयना करने का वक्त मिलेगा। शायद सरकार को निर्माण कार्यों की प्रगति दिखाने वाले विभाग भी नहीं चाहते कि दम तोड़ते पिपलियाहाना तालाब जैसे जलस्त्रोतों को देखने.समझने के लिए औचक निरीक्षण करने की सरकार को याद भी आ जाय। शहर के लोगों को उन सारे जल जानकारों को तलाशना चाहिएएजो यहां होने वाले निर्माण को उचित ठहराने के साथ यह दावा करते रहे थे कि इस तालाब को कोई नुकसान नही होगा ।