पेटलावाद सीएमओ पर अलग हट कर,*संघर्ष से सिद्धि की खास खबर : संजय जैन,सह-संपादक की कलम से

नगर परिषद की लापरवाह अधिकारी आशा भंडारी पर होगी कार्यवाही या कर दी जायेगी लीपापोती?
जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद भी सीएमओ पर कोई कार्यवाही नहीं- जोड़-तोड़ में लगी सीएमओ सफल हो गई क्या?
ऐसी मातृ शक्ति कलेक्टर तो हमने आज तक नहीं देखी : आमजन
झाबुआ/इंदौर। संजय जैन-सह संपादक। 23 मार्च को पेटलावद में हुए भीषण हादसे को 28 दिन से अधिक का समय बीत चुका है,लेकिन अब तक मुख्य आरोपी नरसिंह दास बैरागी और अन्य आरोपियों की पुलिस ने गिरफ्तारी नहीं की है। वहीं हादसे में गंभीर लापरवाही बरतने के आरोप भी नगर परिषद की मुख्य नगर अधिकारी आशा भंडारी पर लगे हैं। सूत्रों के अनुसार,कलेक्टर द्वारा गठित जांच समिति की रिपोर्ट में सीएमओ की लापरवाही स्पष्ट रूप से उजागर हुई है,यह बात सामने आई है।
कई सवाल खड़े कर रही है कार्यवाही में हो रही देरी से
सूत्रों की माने तो जांच रिपोर्ट पूरी कर कलेक्टर को सौंप दी गई है और लगभग कलेक्टर नेहा मीना ने भी जांच रिपोर्ट पर अपनी टिप अंकित कर प्रमुख सचिव नगरीय प्रशासन विकास एवं आवास विभाग भोपाल को भेज दी है। जांच रिपोर्ट को भेजे लगभग एक सप्ताह का समय हो चुका है,लेकिन अभी तक लापरवाह सीएमओ पर कोई कार्यवाही नहीं हुई है या हो सकता है कि लगातार अवकाश होने से देर हुई हो। गौरतलब है कि सीएमओ के खिलाफ कलेक्टर सीधे कोई कार्रवाई नहीं कर सकती है। कार्यवाही हेतु कप्तान को भी प्रमुख सचिव या आयुक्त नगरीय प्रशासन विकास एवं आवास विभाग भोपाल से निलंबन के पूर्व स्वीकृति लेना पड़ती है। कलेक्टर मात्र जांच रिपोर्ट के साथ कार्यवाही हेतु अनुशंसा कर आयुक्त नगरीय प्रशासन विकास एवं आवास विभाग भोपाल को जानकारी के भेज सकती है,लेकिन कार्यवाही में हो रही देरी कई सवाल तो खड़े कर रही है। एक और मजेदार बात यहाँ आपको बता दे कि इसके पूर्व में तालाबों में किये कार्यों की जांच हुई थी,उसमे साफ तौर से घोर आर्थिक अनियमितता भी प्रमाणित हो चुकी है। जांच मे कलेक्टर से लेकर निचले दर्जे के अधिकारी और कर्मचारी भी दोषी पाये गये है। यह जांच भी,न जाने अभी कहा खो गयी है? यह तो कप्तान ही बेहतर तरीके से जानती होगी,ऐसा हमारा मानना है
क्या कार्रवाई से बचने के लिए सक्रिय हैं सीएमओ
सूत्रों की मानें तो सीएमओ आशा भंडारी जांच रिपोर्ट के बाद से अधिकारियों,भोपाल और नेताओं के दफ्तरों के चक्कर लगाते हुए देखी जा रही हैं। सवाल यही उठ रहा है कि क्या वे राजनीतिक संबंधों के चलते आनन फानन में जोड़-तोड़ की कोशिश तो नही करने में लग गयी है? ताकि कोई अप्रिय कार्रवाई से वे बच जाये अब सवाल यह उठता है कि नगर परिषद पेटलावद सीएमओ के खिलाफ आगामी होने वाली कार्यवाही प्रशासन और राजनीति के गठजोड़ में कहीं दब तो नहीं जाएगी या परम्परानुसार सिर्फ लीपापोती तो नही कर दी जायगी?
विवादों में घिरी रहती हैं सीएमओ आशा भंडारी
उल्लेखनीय है कि यह पहली बार ही नहीं है कि सीएमओ आशा भंडारी विवादों में घिरी न हों। पेटलावद में निवास न कर अन्य जिले से रोजाना अप-डाउन करने वाली सीएमओ,पूर्व में बदनावर में भी काफी विवादों में रह चुकी हैं। इतना ही नहीं,बदनावर में एक पत्रकार के खिलाफ भोपाल अजजा आयोग में झूठी शिकायत कर एससी/एसटी प्रकरण दर्ज कराने की कोशिश का मामला भी सामने आया था। जिसके विरोध में स्थानीय पत्रकारों ने एकजुट होकर उच्च स्तरीय शिकायत भी की थी। महेश्वर में भी वे नगर परिषद में दो बार सीएमओ पद पर पदस्थ रही,वहां भी वे विवादित ही रही। सूत्रों की मानें तो वे पूर्व में जो सीएमओ पदस्थ रहे,उनकी कमियां निकालती रहती थी। वही दूसरी ओर वे अपने आप को ईमानदार बताती है और कर्मचारियों को दबाकर रखती है। महेश्वर में भी इनके रहते पूर्व सीएमओ परिषद की शिकायत हुई थी,जिसकी जांच अभी भी चल रही है। अब अंत मे सूत्रों की माने तो पेटलावद में भी इनके द्वारा बड़े ही शातिराना अंदाज से यही खेल खेला गया है। यहां भी पुरानी परिषद के घपलों को करोड़ों का होना बताकर पत्रकारों से जानकारी प्रकाशित करवाई थी,बाद में सब ठंडा पड़ गया था।
क्या पीड़ितों को मिलेगा न्याय?
अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या हादसे के पीड़ितों को न्याय मिलेगा या नही? क्या सीएमओ आशा भंडारी पर सख्त कार्रवाई होगी या फिर यह मामला भी अन्य मामलों की तरह ठंडे बस्ते में चला जाएगा।
ऐसी मातृ शक्ति कलेक्टर तो हमने आज तक नहीं देखी
जब कलेक्टर की कार्यशैली पर हमने कर्मचारियों और आमजन से चर्चा की तो अधिकतर कर्मचारियों का कहना था कि हमने अपने कार्यकाल के दौरान ऐसी पहली मात्र शक्ति कलेक्टर को देखा है जो आये दिन सिर्फ बैठके लेकर हमे सिर्फ लताड़ने ही कार्य करती है। जबकि जमीनी धरातल पर तो कोई कार्य ही नही हो रहा है। अधिकतर लोगों ने रोष पूर्वक कहा कि हमें कोई भी कार्य करवाना हो और हम कलेक्टर से मुलाकात करने जाते है,तो हमे वे घंटों बिठाकर इंतजार करवाती है और अंत मे हमसे मिले बिना ही गुपचुप निकल जाती है। ऐसा कई लोगों के साथ तो वे कर चुकी है और तो और विपक्ष के नेता और पत्रकारो के साथ भी यही रवैया रखती है,फिर हमारा तो क्या हश्र होता होगा? यह बताने की हमें शायद आवश्यकता ही नही है। नगर के कुछ व्यापारियों ने बताया कि शासन को करोड़ो रुपयों के राजस्व का नुकसान विशेषकर धारा 165 पर इनकी कार्यशैली के चलते हो रहा है,इनको इसकी जरा भी परवाह नही है क्या? हमने तो सुना है कि नेता नगरी और प्रभावी लोगों का हर कार्य वे खटाक से कर देती है। हम भी कई वर्षों से झाबुआ में रह रहे है,लेकिन ऐसी मातृ शक्ति कलेक्टर तो हमने आज तक नहीं देखी है। खैर,यह भी कब तक रहेगी? जब भविष्य में नवीन कलेक्टर आएंगे तब हम हमारे कार्य लेकर जाएंगे,हमे तो झाबुआ में जो रहना है। क्या इतना सब सुनकर भी आगे कप्तान अपने वातानुकूलित कक्ष में बैठकर सिर्फ बैठके ही करती रहेगी या जमीन पर उतरकर नगर और जिले की दयनीय स्थिति का जायजा भी लेगी?