होली के बाद फिर शुरू हुआ पलायन,गांव में काम-दाम न मिलने से महानगरों का कर रहे रुख

झाबुआ/इंदौर। संजय जैन-सह संपादक। होली का त्योहार संपन्न होते ही प्रवासी मजदूरों का पलायन शुरु हो गया है। प्रवासी महानगरों की ओर परिवार सहित वापसी करने लगे हैं। वहीं मनरेगा या अन्य किसी योजना से गांव में परिवार पालने लायक काम न मिलने से युवा भी पलायन की राह पर हैं। रेलवे स्टेशन,बस स्टैंड पर प्रवासी मजदूर अपने परिवार व गृहस्थी के सामान के साथ बड़ी संखया में नजर आने लगे हैं।

मनरेगा की असलियत सामने आ रही

जिले से बड़ी सखंया में मजदूरों के पलायन से जहां मनरेगा की असलियत सामने आ रही है। वहीं ग्रामीण मजदूरों की दुर्दशा की चिंताजनक तस्वीर भी दिखाई दे रही है।  गांव में कोई काम नहीं है, काम होता भी है तो मजदूरी देर से मिलती है, ऐसे में लोगों से कर्जा लेकर चूल्हा जलाना पड़ता है। ऐसी योजना किस काम की जो न तो काम दे सके न समय पर मजदूरी...?खेत में सिंचाई न होने से इस बार खेती भी सही नहीं है। मजदूरों के गांव में जो काम होते हैं, वे मशीन से कराए जाते है। कभी-कभी पांच-छह दिन काम मिलता है,तो 25 दिन मजदूरों को खाली बैठना पड़ता है। मजदूरों को पैसा मिलने में देर होने से परिवार उनका पेट पालना मुश्किल हो गया है,इसलिए मजदूर.पलायन पर जा रहे हैं।

गांव में काम-दाम न मिलने से महानगरों का कर रहे रुख

गांवों से पलायन रोकने के लिए मानव श्रम को ग्राम विकास में भागीदार बनाने के लिए लागू कई योजनाएं भी ग्रामीणों को गांव में काम नहीं दिला पाए हैं। जहां भी काम हुए वहां मानव श्रम की बजाए मशीनों से काम कराए गए जिससे स्थिति बिगड़ती चली गई। ऐसे ही लगातार बदतर हो रहे हालातों से जूझते हुए ग्रामीण अपना घर,खेत-खेलिहान छोडकऱ शहरों की ओर कूच कर रहे हैं। एक तो मनरेगा में गांव में काम ही नहीं मिलते,यदि काम मिल भी जाए तो भुगतान कम और देर से मिलता है। मजदूरीLEAD बकाया होने से मजदूर काम करने की बजाय गांव से बोरिया बिस्तर समेटकर काम-दाम और रोटी के लिए महानगरों की ओर पलायन करना ज्यादा सही समझते हैं। ऐसे तमाम कारणों से गांव में काम व मजदूरी के अभाव में जिले से प्रतिदिन सैकड़ों प्रौढ़ और युवा मजदूर रोजगार की तलाश में दिल्ली,मुंबई, चंडीगढ़ सहित अन्य महानगरों का रुख कर रहे हैं।

मनरेगा नहीं रोक पा रही पलायन

सरकार ने आम गरीबों को गांव में ही रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से वर्ष 2005 में पंचायतों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी यानी मनरेगा योजना लागू की है। दुनिया की सबसे बड़ी इस योजना का मूल उददेश्य आस्था व श्रम मूलक कार्य कराके लोगों को काम उपलब्ध कराके उनका पलायन रोकना था,मगर ऐसा हो नही सका। सही मायने में अधिकारियों से लेकर पंचायत प्रतिनिधियों तक सभी मनरेगा से मलाई खा रहे हैं,वहीं जरूरतमंद ग्रामीण परेशान हैं। सच्चाई ये है कि एक तो 90 प्रतिशत ग्राम पंचायतों में कार्य नहीं हो रहे हैं,जो कार्य होते भी हैं वे कागजों पर पूर्ण करके राशि आहरित कर ली जाती है। तालाब गहरीकरण, मिट्टीकरण,पौधरोपण,नाला सफाई के अधिकांश काम मशीनों से कराए जा रहे हैं। कई कामों में मजदूरी तथा मटेरियल के नाम पर फर्जी बिलों से राशि निकाल ली गई है।

मनरेगा से काम देने के निर्देश दिए है

बेहतर भविष्य के लिए बाहर जाना अलग बात है। लेकिन पलायन मजबूरी होना अच्छा नहीं है। मैंने गांव में भ्रमण के दौरान व बैठकों में मनरेगा के जरिए लोगों को काम देने के निर्देश दिए हैं।

जितेंद्र सिंह चौहान- सीईओ- जिला पंचायत,झाबुआ