शिक्षा विभाग तय नहीं कर पाया पुस्तक मेले की तिथि-कक्षा 1 से पांचवीं तक की पुस्तकों का सेट 3 से 5 हजार रुपए,70 प्रतिशत बच्चे खरीद चुके कोर्स

झाबुआ/इंदौर। संजय जैन-सह संपादक। हर साल कोर्स बदलने के नाम पर अभिभावकों को हजारों रुपए की नई किताबें खरीदने को मजबूर करने का लूट का खेल नए शिक्षा सत्र के पहले से ही शुरू हो चुका है। दरअसल स्कूल शिक्षा विभाग के नियमों के अनुसार किसी भी स्कूल को अगले शैक्षणिक सत्र में पढ़ाई जाने वाली किताबों की सूची सत्र से 90 दिन पहले तक सार्वजनिक करनी होती है। बावजूद इसके जिले में किसी भी निजी स्कूल ने तय समय पर पुस्तकों की सूची जारी नहीं की । पालकों को नई किताबे खरीदने के मैसेज स्कूल से जारी हो गए, लेकिन यह किताबे शहर की सभी दुकानों पर आसानी से मिलना  बेहद मुश्किल है, क्योंकि निजी स्कूल संचालकों ने किताबों की सूची  सार्वजनिक ही नहीं की है। इससे परेशान दुकानदारों ने खुद जिला शिक्षा अधिकारी को पत्र लिखकर सूची उपलब्ध करवाने की मांग भी की है। यही नहीं नियमानुसार निजी स्कूल अपने पाठ्यक्रम में बदलाव नहीं कर सकते। इसके बावजूद स्कूल शिक्षा विभाग के अधिकारी नया पाठ्यक्रम जारी करने वाले स्कूलों पर कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं।

अब तक पुस्तक मेला तो क्या,तारीख-तिथि भी तय नहीं कर पाया विभाग

जिले में इस बार भी निजी स्कूल के छात्रों के लिए सस्ती किताबें सपना बनता दिखाई दे रहा है। शैक्षणिक सत्र 2025-26 की शुरुआत हो चुकी है। नया शिक्षण सत्र शुरू होने के बाद 70 प्रतिशत बच्चे अपना महंगा कोर्स खरीद चुके है और विभाग अब तक पुस्तक मेला तो क्या,तारीख-तिथि भी तय नहीं कर पाया है...?अभिभावक कॉपी, किताब,स्टेशनरी, यूनिफॉर्म आदि की खरीदी कर रहे हैं,लेकिन निजी स्कूलों के पुस्तके सेट है। उनकी मूल्य सुनकर सांस फूल रही है। 1ली से तीसरी कक्षा के पूरे पुस्तकों के सेट ही 3 से 5 हजार रुपए में मिल रहे हैं। जबकि स्कूलों में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत एनसीईआरटी की पुस्तकें लागू कर दी गई है, लेकिन अभी भी अधिकांश स्कूल निजी पब्लिकेशन की मनमाने दाम वाली पुस्तकें चला रहे हैं। जिससे अभिभावकों को 3 से 5 हजार रुपए का खर्च आ रहा है। जिले में निजी स्कूल संचालकों की मनमानी का विरोध सोशल मीडिया पर शुरू भी हो गया है।

हर स्कूल की अपनी एक निर्धारित दुकान

2015 में लोक शिक्षण संचालनालय भोपाल ने आदेश दिया था कि एनसीईआरटी की किताबों के अलावा निजी स्कूल अधिकतम 4 किताबें ही चला सकते हैं। इसके बावजूद कई स्कूल 4 से ज्यादा किताबें चला रहे हैं। इनकी कीमत 150 से 500 रुपए तक होती है। जिले में 20से 30 की संख्या में बड़ी निजी स्कूलें संचालित हैं। सभी स्कूलों ने किताबों के लिए दुकानें निर्धारित कर रखी हैं। निर्धारित दुकानों में ही उस स्कूल की किताबें मिलती हैं। एक ही दुकान निर्धारित होने से पुस्तक विक्रेता अभिभावकों को छूट भी नहीं देते, जिससे उन्हें मजबूरन निर्धारित रेट पर पुस्तकें खरीदनी पड़ रही हैं। एनसीईआरटी की किताबें सस्ती होती हैं। लेकिन जब अभिभावकों को ये नहीं मिलती तो वे मजबूरी में उन्हीं दुकानों से किताबें खरीदते हैं,जहां से पहले भी खरीदते आए हैं।

दबदबा रहता है स्कूल संचालकों का

कुछ निजी स्कूल ऐसी है, जिनकी किताबें बाजार में नहीं मिलती। किताबे क्या यूनिफार्म तक उनकी शर्तों के अनुरूप ही खरीदना पड़ते हैं। इस तरह का खेल लंबे समय से चल रहा है,क्योंकि विभागीय अफसरों पर स्कूल संचालकों का दबदबा रहता है। जिसका खामियाजा लोगों को उठाना पड़ रहा है। सूची जारी नहीं होने से पालक दुकानों पर भटक रहे हैं।

कब कलेक्टर से अप्रूवल लेकर लगाएंगे मेला?

प्रदेश के अन्य जिलों में पुस्तक विक्रेताओं की मनमानी पर अंकुश लगाने के लिए पुस्तक मेलों का आयोजन किया जा रहा है।  शिक्षा विभाग के सूत्रों की मानें तो अभी कलेक्टर से पुस्तक मेले के आयोजन को लेकर अप्रूवल नहीं लिया है,अप्रूवल लेकर स्टॉल कब लगाए जाएंगे...? विक्रेताओं को भी बुलाकर बैठक कब रखेंगे? पुस्तक मेले के इंतजार में निजी स्कूलों को पुस्तकें खरीदने का बार-बार दबाव मिल रहा है। 70 प्रतिशत लगभग बच्चे किताब ले चुके है। पुस्तक मेले के आयोजन को लेकर पहल नहीं की गई है,जिससे अभिभावक स्कूल द्वारा निर्धारित पुस्तक दुकानों से ही पुस्तकें खरीदने को मजबूर हैं।

अब तो मातृ शक्ति कलेक्टर से ही बची है आस

पाठ्यक्रम में हो रही लूटपाट पर जब हमारी टीम ने परेशान अभिवावकों से चर्चा की तो अधिकतर लोगों का कहना था कि हम हर साल बच्चो के भविष्य के चलते इस पाठ्यक्रम माफियाओं के शिकार होते चले आ रहे है। सिर्फ इक्का दुक्का कलेक्टर को ही छोड़कर इनकी चुंगल से हमे आज तक ,इस लूट खसोट से बचा नही पाया है। कुछ लोगो का कहना था कि हमने सुना है कि अभी की कलेक्टर किसी भी माफिया को अपने आसपास फटकने तक नही देती है। अत: उनसे हमें पूरी आशा है कि इस साल से शायद जिले में पाठ्यक्रम माफियाओं के एक तरफा लूट का साम्राज्य ,हमेशा के लिए पूर्ण रूप से खत्म हो जाएगा। कुछ अभिवावकों ने रोषपूर्वक हमे बताया की कलेक्टर को तो सिर्फ  नगर के प्रभावी एक मात्र सबसे बड़े पाठ्यक्रम माफिया गांधी स्टोर्स (राजकुमार गांधी) को अपने चुगंल में कर लेवे तो ही सारे दूसरे सभी छोटे मोटे माफिया स्वत: ही भूमिगत हो जाएंगे,ऐसा हमारा पूरा विश्वास है। प्रशासन कहता है कि लिखित में शिकायत देवे ,जो संभव नहीं है क्योंकि हमारे बच्चों के साथ आगे क्या व्यवहार ये माफिया इनके साथी स्कूलों की मिलीभगत से करेंगे,यह हम भली भांति से जानते भी है। अब तो हम सबको जिले की मातृ शक्ति कलेक्टर से ही काफी आस है कि इन माफियाओं के चंगुल से हमें मुक्त कराए।

चला रहे मनमानी तरीके से निजी प्रकाशकों की किताबें

निजी स्कूल मनमानी तरीके से निजी प्रकाशकों की किताबें चला रहे हैं। शहर की हर स्कूल का यही हाल है,कक्षा 4थी एवं 5 वीं की किताबें 3 से 4 हजार में मिल रही है, जिला प्रशासन कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है।

रामेश्वर सोलंकी- अभिभावक

नहीं हुआ पुस्तक मेले का आयोजन

प्रदेश के अन्य जिलों में निजी स्कूलों की मनमानी पर जिला प्रशासन द्वारा नकेल कसी जा रही है,लगातार कार्रवाई हो रही है,लेकिन हमारे जिले में प्रशासन सो रहा है। पुस्तक मेले तक का आयोजन नहीं हुआ।

राहुल यादव- अभिभावक

प्रशासन सख्त हो तो ही खत्म हो सकेगी निजी स्कूलों की मनमानी

यह समस्या हर साल की है। अच्छा कमीशन पाने के लिए निजी स्कूल निजी प्रकाशकों के महंगे पाठ्यक्रम अभिभावकों से खरीदवाते हैं। प्रशासन को चाहिए कि इस मोनोपोली को खत्म करने के लिए सख्ती से कदम उठाए जाएं। यदि 5-5 दुकानों के नाम विद्यालय के सूचना पटल पर स्वच्छ एवं स्पष्ट रूप से चस्पा करने का आदेश थे तो उसका  सख्ती से पालन कराना भी जिला शिक्षा अधिकारी की जिम्मेदारी तो हैं।

जितेंद्र सिंह राठौर- रहवासी-झाबुआ

मोनोपॉली नहीं होने देंगे

निर्देश दिए जाएंगे, नियमानुसार हर स्कूल सूची जारी करें,मोनोपॉली नहीं होने देंगे। जांच कर कार्रवाई की जाएगी। निजी स्कूल की पुस्तकों के संबंध में अभी किसी भी तरह की शिकायत नहीं आई है। पुस्तक मेला आयोजित करने संबंधी तैयारी की जाएगी।

आरएस बामनिया- डीईओ-झाबुआ