नवकार-मंत्र पर अलग हट कर,संघर्ष से सिद्धि की विशेष पेशकाश : संजय जैन,सह-संपादक की कलम से

बुधवार को विश्व शांति हेतु प्रधानमंत्री मोदी सहित पूरा देश नवकार धर्म यज्ञ में हुआ शामिल
व्यक्ति की नहीं,गुणों की पूजा है,।। णमोकार महामंत्र।।-निर्विकार,गुणवान महान आत्माओं को नमस्कार-सभी धर्मों के प्रति समानता का भाव
झाबुआ/इंदौर। संजय जैन-सह संपादक। बुधवार 9 अप्रैल 2025 को प्रात: 8.01 से 9.36 तक समग्र विश्व में विश्व शांति हेतु विश्व नवकार महामंत्र दिवस का आयोजन किया गया। जिसका उद्देश्य सिर्फ वैश्विक स्तर पर जैनत्व के प्रतीक नवकार महामंत्र के विस्तार के माध्यम से वैश्विक शांतिमय आभामंडल की संरचना संभावित है बताना था। अखिल भारतीय श्री राजेंद्र जैन नवयुवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रकाश छाजेड़ ने बताया कि बुधवार 9 अप्रैल को विश्व नवकार महामंत्र दिवस पर नवकार महामंत्र का जाप किया गया। सामूहिक आराधना करने से पूरे वातावरण में आध्यात्मिक तरंगे प्रभावित हुई और आधी व्याधि उपाधि से ग्रस्त जीव मात्र को आनंद शांति सुख समृद्धि काअनुभव भी हुआ। इस धर्म यज्ञ में विश्व शांति हेतु प्रधानमंत्री मोदी सहित पूरा देश शामिल हुआ।
जीवन जीने का एक तरीका
णमोकार मंत्र केवल एक प्रार्थना नहीं है,यह जीवन जीने का एक तरीका है। यह आध्यात्मिक आदर्शों के लिए श्रद्धा उत्पन्न करता है।आत्म- साक्षात्कार और मुक्ति की दिशा में आत्मा को मार्गदर्शन करता है। साथ व्यक्ति को मानसिक शांति और संतुलन की दिशा में प्रेरित करता है। इस महामंत्र को नवकार महामंत्र, नमस्कार महामंत्र,नमोकार महामंत्र आदि भी कहा जाता है। जैन दर्शन में कहा गया है वत्थु सहावो धमो यानि वस्तु का स्वभाव ही उसका धर्म अर्थात् गुणधर्म है। चाहे वह वस्तु जड़ हो या चेतनए चर या अचर, नित्य या अनित्य परंतु उस वस्तु का उसके स्वभाव में रहना ही उसका धर्म है। जैसे पानी का स्वभाव शीतलता। पानी को कितना भी गर्म क्यों न कर लो, वह अपने शीतल स्वभाव में आ जाता है ।
है वैश्विक चेतना का मंत्र
नवकार मंत्र किसी पंथ,जाति या संप्रदाय की सीमाओं में नहीं बंधता। यह उन समस्त आत्माओं को नमन करता है जिन्होंने अध्यात्म की परम ऊंचाइयों को छूकर सयकत्व की मिसाल पेश की-अरिहंत, सिद्ध,आचार्य,उपाध्याय और साधु-साध्वी। यह मंत्र अहंकार का क्षय करता है,राग-द्वेष को मिटाता है और आत्मा को विश्रांत करता है। यह वैश्विक चेतना का मंत्र है। जीवन जब बार-बार हमें पराजय का अनुभव कराए,जब दिशाहीनता का अंधकार बढ़ जाए,तब नवकार मंत्र ही वह प्रकाश है,जो हमें मार्ग दिखाता है। यह हमें सिखाता है कि समस्त संघर्षों का उत्तर भीतर ही है और उस उत्तर तक पहुंचने का रास्ता है-मंत्र, साधना और समर्पण।
पंच परमेष्ठियों को नमस्कार
णमोकार महामंत्र की बराबरी का मंत्र दुनिया में मिलना मुश्किल है। इसमें विश्व के सभी निर्विकार गुणवान महान आत्माओं को नमस्कार किया है। इसमें अक्षरों, शब्दों का ऐसा वैज्ञानिक गुंफ न हुआ है कि यह मंत्र दुखों से बचाने में भूमिका निभाता है। इसका प्राचीनतम लिखित रूप ईसा की प्रथम शताब्दी में आचार्य पुष्पदंत भूतबली द्वारा रचित षट्खंडागम ग्रंथ में मिलता है। उड़ीसा प्रांत के भुवनेश्वर के निकटवर्ती खंडगिरि उदयगिरि पर्वत की हाथी गुफा के 2000 साल पुराने प्राकृत भाषा व ब्राह्मी लिपि में लिखे शिलालेख की शुरुआत नमो अरिहंतानं,सव्व सिद्धानं से हुई है। इसी शिलालेख की दसवीं पंक्ति के भरघ वस पद को ध्यान में रखकर संविधान सभा ने देश का नाम भारत स्वीकार किया था। महामंत्र में विश्व में सर्वोपरि पांच परम स्थान में स्थित पंच परमेष्ठियों को नमस्कार किया है।
भारतीय चिन्तन प्रारभ से ही उदारवादी और समन्वयवादी रहा
भारतीय संस्कृति और भारतीय चिन्तन प्रारभ से ही उदारवादी और समन्वयवादी रहा है। वसुधैव कुटुबका का संदेश तथा सर्वधर्म समभाव की भावना इसी उदारता और समन्वयवादिता का परिचय देती है। सर्वधर्म समभाव का अर्थ है सभी धर्मो के प्रति समानता का भाव । सब धर्मों में समानता के तत्त्व मिल सकते हैं। उन्हें खोजना आवश्यक है। चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर ने सर्वधर्म समभाव के रूप में अनेकान्त और स्याद्वाद जैसे सह अस्तित्त्व के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। अनेकांत सिद्धान्त एक ही वस्तु में अनेक विरोधी धर्मों अर्थात् गुणों को अंगीकार करता है। अनेकान्त की यह विशेषता है कि इसमें दूसरा पक्ष भी उतना ही महत्त्वपूर्ण होता है, जितना कि पहला पक्ष। वस्तु अनेकांतात्मक है,इसीलिए इस अनेकांतात्मक वस्तु का सापेक्षता की दृष्टि से कथन करना स्याद्वाद कहलाता है, अर्थात् सभी धर्मों के प्रति सापेक्षता का दृष्टिकोण।
सर्वधर्म समभाव
णाणा जीवा णाणा कमा
णाणाविहं हवे लद्धी ।
तहा वयण विवादं, सग-पर
समएहिं वज्जेजा ॥156॥
अर्थात् लोक में नाना प्रकार के जीव हैं,नाना प्रकार के कर्म हैं,नाना प्रकार की लब्धियां हैं,अत स्व पर के विषय में वचन-विवाद का त्याग करो। यह भिन्नता चिन्तन की स्वतंत्रता का प्रतिफलन है,इसलिए हम वैचारिक स्वतंत्रता का समान करें और सहिष्णुता को अपनाएं, जिससे सर्वधर्म समभाव की भावना का विकास होगा और देश विकास की राह पर अग्रसर हो सकेगा।
णमोकार मंत्र आंतरिक शांति और आत्म.-शुद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है
णमो अरिहंताणं,णमो सिद्धाणं,णमो आयरियाणं,णमो उवज्झायाणं,णमो लोए सव्वसाहूणं।
एसो पंच णमोक्कारो,सव्वपावप्पणासणो। मंगलाणं च सव्वेसिं,पढमं हवई मंगलं।।
णमोकार मंत्र आंतरिक शांति और आत्म.-शुद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है।
आचार्य कुन्दकुन्ददेव रचित -नियमसार- पाहुड़ में भी कहा है
यह यथार्थ को छूने वाली भाषा है । प्रत्येक धर्म ने जो कुछ कहा है,वह अपनी अपेक्षा से कहा है । हम उसकी अपेक्षा को समझने का प्रयत्न करें किन्तु अपनी अपेक्षा को उस पर लादने का प्रयत्न न करें। कोई भी व्यक्ति सपूर्ण सत्य का प्रतिपादन नहीं कर सकता। वह कुछ सापेक्ष सत्यों का ही प्रतिपादन करता है। हम निरपेक्ष होकर उस सत्यांश का मूल्यांकन न करें । सभी धर्मों के विचार समान हों,यह आवश्यक नहीं है । प्रथम शताब्दी के आचार्य कुन्दकुन्ददेव रचित नियमसार पाहुड़ में भी प्राकृत गाथा के माध्यम से यहीं कहा है।
प्रो.डॉ.र्राजकमल संघवी-इंदौर
दिखाता है मंत्र,हमें राह
जब मनुष्य के जीवन में अंधकार गहराता है। चिंता,भय,मोह या भ्रम का कोई साया जीवन के आकाश पर मंडराने लगता है,तब एक दिव्य मंत्र हमें राह दिखाता है।
डॉ.यशवंत भंडारी, झाबुआ
आत्मा का स्पंदन है
यह मंत्र केवल शब्द नहीं,आत्मा का स्पंदन है,यह केवल उच्चारण नहीं, आत्मिक जागरण की गूंज है। यह है नवकार मंत्र,जैन दर्शन का सर्वाधिक शक्तिशाली यह मंत्र,संपूर्ण मानवता को शांति,करुणा और समत्व का संदेश देता है। यह वैश्विक चेतना का मंत्र राग और द्वेष को मिटाता है।
संजय मेहता-पूर्व श्री श्वेताम्बर जैन संघ अध्यक्ष, झाबुआ
जीवन जीने का एक तरीका
णमोकार मंत्र केवल एक प्रार्थना नहीं है,यह जीवन जीने का एक तरीका है। साथ व्यक्ति को मानसिक शांति और संतुलन की दिशा में प्रेरित करता है। इस महामंत्र को नवकार महामंत्र, नमस्कार महामंत्र,नमोकार महामंत्र आदि भी कहा जाता है।
प्रो.डॉ.प्रदीप संघवी,झाबुआ