क्या इंदौर प्राधिकरण की तर्ज पर झाबुआ की पुरानी ऐतिहासिक धरोहर बहादुर सागर और छोटे तालाब को भी मिल पायेगा नया जीवनदान?

जल गंगा अभियान-इंदौर प्राधिकरण ने 250 साल पुरानी बावड़ी को संवारा,मलबे में कराह रही अहिल्या बावड़ी को मिला नया जीवनदान

झाबुआ/इंदौर। संजय जैन-सह संपादक। इंदौर विकास प्राधिकरण को भी विश्वास भी नहीं था कि कनाड़िया क्षेत्र में फोनिक्स मॉल के पीछे उसके द्वारा जो टीपीएस-5-टॉउन प्लानिंग स्कीम को अमल में लाने के दौरान मलबा-कीचड़ हटाने के दौरान होल्कर रियासत वाली 250 साल पुरानी बावड़ी की सौगात उन्हें मिल जाएगी। वर्षों से मलबे में दबे होने के कारण कराह रही,इस बावड़ी का जल गंगा अभियान में प्राधिकरण ने रूप निखार दिया है। प्राधिकरण सीईओ आरपी अहिरवार ने का कहना है कि लगभग 250 साल पुरानी जो ऐतिहासिक अहिल्या बावड़ी मिली है,वो कूड़े-कचरेए गंदगी और मलबे में दबी हुई थी। जल संवर्द्धन अभियान में जब साफ.-सफाई कराई गई तो बावड़ी का मूल स्वरूप नजर आने लगा। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया हाल ही में मियावाकी पद्धति से पौधारोपण भी कर चुके हैं। बावड़ी में लगाए गए पुराने पत्थर उखड़ गए थे,उनकी जगह अब नए पत्थर लगाए जा रहे हैं। टूटी दीवार,फर्शी के साथ-साथ आर्च की भी मरम्मत की जा रही है। साथ ही बावड़ी के पास शिवलिंग भी था,उसे भी मंदिर बना कर व्यवस्थित किया गया है। बहुत संभव भी है कि मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव इस बावड़ी को मिले जीवनदान को देखने,अधिकारियों की पीठ थपथपाने इंदौर आ भी जाये। क्या इंदौर प्राधिकरण की तर्ज पर झाबुआ की पुरानी ऐतिहासिक धरोहर बहादुर सागर और छोटे तालाब को भी मिल पायेगा नया जीवनदान?

राजमाता अहिल्या बाई ने बावड़ी का निर्माण कराया था

सतत कटती कॉलोनियों और विकास की होड़ का असर इंदौर शहर के पुरातन जल स्त्रोत पर भी हुआ है। जलगंगा अभियान में ऐसी पुरानी बावड़ी-कुओं आदि के जीर्णोद्धार की शुरुआत हुई है। प्राधिकरण ने कनाडिय़ा रोड पर जो टीपीएस-5 घोषित की है,उसमें चल रहे विकास कार्य में इस बावड़ी का पता चला है। आसपास के ग्रामीणों से प्राप्त जानकारी अनुसार पता चला है कि उक्त बावड़ी के समीप एक कच्चा रास्ता था,जो ग्राम कनाडिया की ओर जाता था। ग्रामीण लोगों की पानी की व्यवस्था हेतु राजमाता अहिल्या बाई ने उक्त बावड़ी का निर्माण कराया था। पहले इस पूरे क्षेत्र में पानी की आपूर्ति इसी बावड़ी से होती थी,मगर अब वर्षों से यह बावड़ी बंद पड़ी है। आपको ज्ञात हो कि अभी भी बावड़ी में पानी की पर्याप्त आवक भी है।

बहादुर सागर  तालाब का इतिहास

वर्ष 1766 में इस तालाब का निर्माण महाराजा बहादुर सिंह जी द्वारा किया गया था जिसका कुल रकबा 68 बीघा था। जो आज की तारीख में अतिक्रमण के चलते कुछ कम हो चुका है,जिस और प्रशासन को ध्यान देना होगा। 1766 में झाबुआ की जनसँख्या1300 से 2000 के करीब ही थी। उस वक्त बिना तकनीक के भी,महाराजा का विज़न कितना सही था कि आज झाबुआ की जनसंख्या 50 हजार के पार हो जाने के बाद भी यह तालाब झाबुआ को जल प्रदाय करने में सक्षम है,बशर्ते उसमें हुए अतिक्रमण,नियमित सफाई और एक सुनियोजित सीवेज सिस्टम की ओर ईमानदारी और जिम्मेदारी से ध्यान दे दिया जाय।

हाथ पैर धोने लायक भी नही है पानी

तालाब का पानी पीने के लायक तो क्या हाथ पैर धोने के लायक भी नही है। इस तालाब में कई घरों का मल-मूत्र सीधे पहुच रहा है। तालाब खाली होते से ही मिट्टी जैसे-जैसे हटेगी,सारा अतिक्रमण और गंदगी कहा से आ रही यह साफ  भी हो जाएगा। शासन को सीवरेज की सही प्लानिंग कर,इसका व्यवस्थित निकास करना होगा। सभी धर्म के लोग अपनी पवित्र चीजो को,इस ख़राब अपवित्र पानी में प्रवाहित भी करते है। इसके लिए पुलिया के दूसरी ओर दोनों तरफ  से बाउंड्री बनाकर स्थायी पोखर बना कर दोनों तरफ  से गेट लगा देना चाहिए। इससे हर साल अनास पर पोखर के लिए हो रहे लाखो क ा खर्च बच जाएंगा,जो हर वर्ष काम भी आएगा।

क्या इंदौर प्राधिकरण की तर्ज पर झाबुआ की पुरानी ऐतिहासिक धरोहर बहादुर सागर और छोटे तालाब को भी मिल पायेगा नया जीवनदान.....
आपको बता दे कि झाबुआ शहर की सबसे पुरानी ऐतिहासिक धरोहर बहादुर सागर और छोटे तालाब भी है,जिसकी खस्ता हालात को देखते हुए यह साफ  प्रतीत होता है कि इन तालाबों की ओर किसी भी जिम्मेदार अधिकारी का ध्यान ही नही है। हमने लोगों से इस मामले में जब चर्चा की तो उन्होंने बताया कि झाबुआ में आज नल-जल योजना की कोई आवश्यकता ही नही रहेगी,यदि झाबुआ के इन तालाबो को भी जलगंगा अभियान की तर्ज पर जिम्मेदार प्रशासन सहेज लेवे। कुछ लोगो ने बताया कि पूर्व कलेक्टर सोमेश मिश्रा ने झाबुआ के जितेंद्र सिंह राठौर और पत्रकार संजय जैन के साथ कंधे कंधे मिलाकर तालाब की सफाई और गहरीकरण का बीड़ा उठाया था। उनके इस कार्य को झाबुआ आज तक नही भुला है,क्योंकि यह पूरा कार्य इन दोनों ने नि:स्वार्थ स्वत: सुबह से शाम खड़े रहकर मात्र जनसहयोग से करवाया था। जिसमे शासन के कई विभागों ने काफी सहयोग भी दिया था। इसके बाद तो करोड़ से ऊपर का टेंडर नपा ने जारी कर मात्र अपना उल्लू सीधा कर लिया है,जिसके चलते आज भी दोनो तालाब अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहे है। मातृ शक्ति कलेक्टर सिर्फ  अभी की और पुरानी जांच रिपोर्ट को गंभीरता से देख लेवे,साथ उपरोक्त झाबुआ के दोनो लोगो को पूर्व कलेक्टर सोमेश मिश्रा की तरह से सहयोग ही कर देवे,तो हम दावे के साथ कहते है कि इन तालाबो का मूल रूप निखर और नया जीवनदान भी मिल जाएगा,वह भी टेंडर से नही सिर्फ  जनसहयोग से फिर इसके बाद जिला कप्तान को तो किससे पूछना?
                                                            
बावड़ी की विस्तृत जानकारी

लंबाई-40 मीटर
चौड़ाई -9.5 मीटर
*गहराई -15 मीटर (अंतिम गहराई पीछे की ओर)
औसत गहराई -7.5 मीटर
* कुल आयतन-2850 एम 3*
क्षमता-2.8 एमएलडी

बावड़ी के आसपास बगीचा विकसित करेंगे

शासकीय सेवा में कुछ काम ऐसे होते हैं,जिनसे मन को काफी संतुष्टि मिलती है। इस पुरातन बावड़ी को संवार कर प्राधिकरण की टीम को ऐसा ही खुशनुमा अहसास और बेहद सुकून भी मिला है। उल्लेखनीय है कि बारिश के मौसम में बावड़ी में पानी की आव भी बढ़ना शत प्रतिशत तय है। इस बावड़ी के आसपास सौंदर्यीकरण के साथ बगीचा विकसित करने की योजना है।

आरपी अहिरवार-सीईओ,इंदौर विकास प्राधिकरण

सभी घाटों को खोलने और बीच के टीले को हटाने को देनी होगी पहली प्राथमिकता

इस तालाब से सटे हुए छोटे-बड़े 13 घाट हुआ करते थे जिसमें से आज अब 7 से 8 ही नजर आ रहे है। यदि सारे घाट खोल दिये जाएँ और बीच का टीला हटा दिया जाय तो,यह तालाब अपने पहले के सौंदर्य को अवश्य प्राप्त कर सकता है। जिसमे कोई संदेह है,ही नही।

केके त्रिवेदी-इतिहासकार,झाबुआ

 पहले कलेक्टर को जाते हुए देखा था,जनहित के लिए बाइक से

मैंने झाबुआ के पहले कलेक्टर को जनहित के लिए कटीली झाड़ियों से होते हुए बाइक से जाते हुए देखा था। पूर्व कलेक्टर सोमेश मिश्रा जमीन पर उतरकर कार्य सम्पन्न करवा रहे थे। यह जनहित का कार्य झाबुआ के लिए अवश्य एक वरदान साबित होता। झाबुआ की जनता पूर्व कलेक्टर सोमेश मिश्रा को कभी भी भुला ही नही पाएगी।

जितेंद्र सिंह राठौर-आरटीआय कार्यकर्ता,झाबुआ