करे कौन और भरे कौन? सीएमओ पेटलावद ने अपनी बला टालने हेतु तो नहीं जारी कर दिया इंजीनियर और एक कर्मचारी को कारण बताओ नोटिस?

ट्रांसफर के बाद भी नही छुटा था,पेटलावद का मोह,ले आयी थी स्थगन आदेश-नगर के विकास पर सीधे तौर से भारी बड़ा ग्रहण लग चुका

झाबुआ/इंदौर। संजय जैन-सह संपादक। नगर परिषद पेटलावद में जब से सीएमओ के रूप में आशा भंडारी ने पदभार ग्रहण किया है, तब से मानो हर एक दिन नए-नए विवाद के साथ आशा भंडारी का नाम जुड़ते हुए नजर आता रहा है। उल्लेखनीय है कि पूर्व में भी अध्यक्ष सहित कई पार्षदों ने सीएमओ का घोर विरोध भी किया था। इन्होंने जनपद कार्यालय पर पहुच कर एसडीएम से इनकी सामूहिक शिकायत की थी,बावजूद इसके भी इनके रवैये में तनिक भर का सुधार नहीं आया।

कठपुतली की तरह चला रही है पार्षदों को

जब इस मामले में हमने नगर की लोगो से चर्चा की तो उन्होंने चटखारे लेते हुए हमें बताया कि हमारे नगर परिषद पेटलावद में तो अध्यक्ष,उपाध्यक्ष और समस्त पार्षद सिर्फ  नाम के ही रह चुके हैं,वे तो सब परिषद के मात्र पात्र ही है। सीएमओ उन्हें अपने तरीकों से कठपुतली की तरह चला रही है। कुछ लोगो ने बताया कि जनप्रतिनिधियों और सीएमओ का आपसी तालमेल न बैठना और सीएमओ के अड़ियल रवैये के चलते नगर के विकास पर तो ग्रहण ही लग चुका है।

पेटलावद के विकास पर सीधे तौर से भारी बड़ा ग्रहण लग चुका

नगर की जनता वार्डों में पार्षदों को कोसते हुए आसानी से देखी जा सकती है। आये दिन जनता का विरोध इन तमाम पार्षदों को झेलना भी पड़ रहा है। चुनाव के समय इन प्रत्याशियों ने चुनाव जीतने के लिए जो वादे और दावे किए जनता से किये थे ,वह सभी अब तक तो खोखले ही साबित हो रहे है। इससे साफ  प्रतीत होता है कि सीएमओ के आने के बाद से पेटलावद के विकास पर सीधे तौर से भारी बड़ा ग्रहण लग चुका है। उल्लेखीनय है कि लगातार अपने ही नियमों की बात करने वाली सीएमओ की बड़ी लापरवाही तो,इस अवैध निर्माण के हादसे से साफ तौर से उजागर तो हो गयी है। सूत्रों से प्राप्त जानकारी अनुसार परिषद में छोटी-बड़ी सभी खरीदी भी सीएमओ की निगरानी में ही होती है। स्थानीय दुकानदारों और व्यापारियों को लाभ न देते हुए अन्य शहरों और जिलों से सामग्री खरीदी की जा रही है। पेटलावद परिषद की स्थिति यह हो चुकी है कि पार्षद नाम मात्र परिषद में सिर्फ घूमने जाते हैं और परिक्रमा कर वापस लौट आते हैं। इसकी यह वजह बताई जाती है कि ना तो उनको समस्या सीएमओ सुनती और ना ही वे उनकी समस्या का कोई निदान करती है।

ट्रांसफर के बाद भी नहीं छुटा था,पेटलावद का मोह,ले आयी थी स्थगन आदेश.....
मजेदार बात तो यह भी है कि इतना नजरअंदाज, परेशानी और अपमान होने के बाद भी क्यो यह जनप्रतिनिधि लामबंद होकर सीएमओ के खिलाफ आवाज नहीं उठा पा रहे हैं....? अंदरखाने की खबर यह भी है कि सीएमओ की नजरअंदाजी से अधीनस्थ कर्मचारी भी परेशान है। अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि सीएमओ के खिलाफ  कभी भी विरोध के स्वर तेजी से उठ सकते हैं। ज्ञात हो कि पेटलावद हादसे में खुद पर तलवार लटकती देख सीएमओ ने खुद को दूध का धुली साबित करने,अपने अधीनस्थ इंजीनियर और एक कर्मचारी को बलि का बकरा बनाते हुए कारण बताओ नोटिस भी जारी कर दिया है। गौरतलब है कि पूर्व में सीएमओ का ट्रांसफर हो गया था किंतु सीएमओ ने न्यायालय की शरण लेकर स्थगन आदेश ले लिया था। सीएमओ का  ट्रांसफर होने के बाद भी पेटलावद मोह नहीं छूटा था।