बीस के नोट की कीमत तो सबको पता है,लेकिन बीस रुपये में ही मिलने वाले बोतलबंद पानी का महत्व हम समझना ही नही चाहते

विश्व जल दिवस पर परिचर्चा-क्या पानीदार रहेगी हमारी दुनिया
जल प्रबंधन के मामले में भारत के पिछड़ेपन पर अफसोस जाहिर किया जल जानकारों ने
झाबुआ/इंदौर।संजय जैन-सह संपादक। विश्व जल दिवस पर गत दिन प्रेस क्लब में सेवा सुरभि द्वारा आयोजित परिचर्चा में पंकज चतुर्वेदी (दिल्ली) संदीप नारुलकर और निगमायुक्त शिवम वर्मा ने पेयजल की फिजूलखर्ची पर चिंता व्यक्त करने के साथ माना कि जल प्रबंधन के मामले में भारत में अभी भी पिछड़ापन है।हमें बीस के नोट की कीमत तो पता है, लेकिन बीस रुपये में मिलने वाले बोतलबंद पानी को लेकर गंभीरता नहीं है।पानी बचाने के लिए हमें ही अनुशासन का पालन करना होगा। होटल संचालक आधा गिलास पानी सर्व करने का नियम बना लें ,तो पेयजल की फिजूलखर्ची पर नियंत्रण लग सकता है।
जो समाज वरुण देवता को मानता है उसने ही बावड़ी को पाट दिया
मुख्य वक्ता-लेखक पंकज चतुर्वेदी ने मल्हारगंज में बीते बचपन और कुए-बावड़ियों की याद करते हुए कहा 147 साल पहले इंदौर में सिरपुर तालाब से जलापूर्ति शुरु हुई थी।बाद में हम तालाब पी गए, फिर नदी भी पी गए। कान्ह नदी भी नाले में बदल गई। हम किसे दोष दें...? नदी , शहरी करण या बढ़ती आबादी के साथ पानी की जरूरत को....? इंदौर और पटना सहित अन्य शहरों में मूल फर्क है,अपनी स्थानीयता पर गर्व करने का। यह बात अन्य किसी शहर में नहीं है। इंदौरी होने के उस गर्व ने ही सतत सात बार इसे नंबर वन बनाया है।स्वच्छता की तरह जल संरक्षण में भी यह शहर अन्य शहरों के लिए आदर्श बन सकता है।पटेल नगर में बावड़ी हादसे को इस शहर ने भोगा है, जो समाज वरुण देवता को मानता है उसने ही बावड़ी को पाट दिया।
चाइना में तीन तरह के नल हर घर में लगे हैं
शहरों में एक हल्ला हुआ कि बावड़ी-कुए का पानी पीने से पीलिया हो गया। तब नल के जल की मांग उठ गई।हम पानी के इस्तेमाल के तरीकों को नहीं बदल पाए, पेयजल का ही सभी कामों में उपयोग करते हैं जबकि चाइना में तीन तरह के नल हर घर में लगे हैं।हम नदी को रीवर फ्रंट में बदल देते हैं। तालाब को तालाब नहीं रहने देते। नदी-तालाब के किनारे की जमीन पर हम सौंदर्यीकरण कर रहे हैं जबकि उस पानी-मिट्टी को गिंडोले और अन्य जीव जंतु शुद्ध रखते हैं। नदी अविरल बहेगी तो कैचमेंट एरिया में तरावट रहेगी। एक नदी, पांच तालाब, पचास कुए इस पिरामिड को तोड़ने से ही जल संकट के हालात बनते हैं। पानी प्रबंधन के लिये बड़ी की जगह छोटी योजनाओं पर काम करना होगा। पहले कुए से आसपास के घरों में पानी की सप्लाय हो जाती थी, उसके बदले पानी की टंकियों ने ले ली। छोटी योजनाएं जल बचाव में मददगार रहती है। स्थानीय परियोजनाओं को महत्व दें, इसमें खर्चा भी कम लगेगा।
इंदौर में डेढ़ लाख लीटर शुद्ध पेयजल नाली में बहाते है
इंदौर में डेढ़ लाख लीटर शुद्ध पेयजल नाली में बहाते हैं। आने वाले मेहमान को आधा गिलास पानी देना शुरु करें। खेती का पानी बचाने पर सोचना होगा। वाशिंग मशीन, एसी, आरओ आदि के वेस्ट पानी का उपयोग करने लगें तो भी पानी को भारी मात्रा में बचा सकते हैं ।देश के जो 18 शहर पेयजल संकट से जूझ रहे हैं, उनमें बैंगलुरु भी शामिल है जहां डेढ़ सौ से अधिक झीलों पर कॉलोनियां बन गईं है।
नर्मदा के महंगे पानी का अपव्यय कर पाप कर रहे
संदीप नारुलकर ने कहा इंदौर की जैसे जैसे जनसंख्या बढ़ेगी, जमीन तो फिर भी मिल जाएगी लेकिन जल स्त्रोत और पानी बढ़ाना बड़ी चुनौती है। अभी नर्मदा के चौथे चरण की बात चल रही है। महानगर की घोषणा भी कर दी है। इन सभी क्षेत्रों की जलापूर्ति का स्त्रोत नर्मदा ही है। दो-दो करोड़ की जनसंख्या वाले इंदौर, भोपाल महानगर बसाना चाहते हैं,लेकिन पानी की उपलब्धता नर्मदा ही है। नर्मदा के महंगे पानी का अपव्यय कर हम पाप कर रहे हैं। हम अहाता, सड़क का हिस्सा, गाड़ी तक धोते रहते हैं। मांग के प्रबंधन पर जोर दें, इजराइल का वॉटर मैनेजमेंट सबसे अच्छा माना जाता है। वहां अधिकतम 9 इंच बारिश ही होती है, लेकिन 94 प्रतिशत वेस्ट वॉटर मैनेज कर के उपयोग में वे ले लेते हैं। जल मांग प्रबंधन पर गंभीरता से काम करें। महानगर से पहले जल मांग प्रणाली पर चिंतन करें।
यह थे उपस्थित
प्रारंभ में पूर्व महापौर उमा शशि शर्मा, अजित सिंह नारंग, राजेंद्र जैन, शिवाजी मोहिते ने पौधे में जल चढ़ाकर प्रकृति संरक्षण और जल के बेहतर उपयोग का संदेश दिया। कार्यक्रम का संचालन संजय पटेल ने किया और आभार माना कुमार सिद्धार्थ ने।