दो वर्षो बाद फिर शुरु हुआ बोन(अस्थि) बैंक, अब सहेजी जा सकेंगी अस्थियां, मरीजों को मिलेगी राहत

झाबुआ/ इंदौर।संजय जैन-स्टेट हेड। मध्य प्रदेश का पहला बोन (अस्थि)बैंक एमजीएम मेडिकल कॉलेज इंदौर में गत गुरुवार से फिर शुरु हो गया है।अव्यवस्थाओं के चलते दो वर्षो से यह बंद अस्थि संरक्षण केंद्र फिर से शुरू होने से उन मरीजों को राहत मिलेगी। परिणामस्वरूप अब दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद टूटी हड्डियों के प्रत्यारोपण के लिए जो मरीज वेटिंग में रहते थे उन्हें अब इस सुविधा से फायदा होगा।
दो साल पहले रखरखाव के अभाव में बंद हो गया था अस्थि बैंक
बोन बैंक सामान्यतः आई बैंक की तरह ही हैं, जिसमें डोनर द्वारा दान की गई या ऑपरेशन के दौरान निकाली जाने वाली अस्थियों का डीप फ्रीजर में संग्रह किया जाता है।मध्य प्रदेश में एमजीएम मेडिकल कॉलेज इंदौर ही ऐसा है जहां बोन बैंक चालू था लेकिन दो साल पहले रखरखाव के अभाव में यह डीप फ्रीज खराब हो गया था। उस वक्त तत्कालीन डीन ने भी इसे पुन: चालू करने में रुचि नहीं दिखाई थी। जिसके चलते इसमे रखी हड्डियां भी खराब हो गई थी।
हाथोंहाथ स्वीकृति दे दी गयी
वर्तमान डीन डॉ.घनघोरिया ने अभी जब हड्डी विभाग का अवलोकन किया तब (आर्थोपीडिक एंड ट्रोमेटोलॉजी) विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ.सौरभ जैन द्वारा उन्हें डीप फ्रीजर के खराब है यह परेशानी बताई। डॉ.घनघोरिया खुद सर्जन है इसलिये बोन बैंक की भी अहमियत समझते हैं।उन्होंने हड्डी विभाग के डॉक्टरों से मीटिंग की, उनकी जरूरत समझी, टेक्नीशियन ने जो एस्टीमेट दिया था उसकी नोटशीट बना दी गई। जसका दस लाख का खर्चा था जिसे हाथोंहाथ स्वीकृति दे दी गयी। कमेटी की सिफारिश पर मात्र दो घंटे में मरम्मत का आर्डर जारी भी कर दिया गया।
बोन बैंक के पुनरुद्धार से शोधकर्ताओं और रोगियों दोनों को लाभ होगा डीन डॉ. घनघोरिया
एमजीएम मेडिकल कॉलेज इंदौर के डीन डॉ. अरविंद घनघोरिया ने बताया कि दोषपूर्ण मशीनों की मरम्मत का आदेश दे दिया है और सुविधा की बहाली भी हो गई है l इसके पुनरुद्धार से शोधकर्ताओं और रोगियों दोनों को लाभ होगा। अंग प्रत्यारोपण के विपरीत, जिसमें जीवित दाताओं की आवश्यकता होती है, बोन बैंक दुर्घटना-संबंधी सर्जरी और संयुक्त प्रतिस्थापन से निकाली गई हड्डियों पर मरीज निर्भर रहते हैं। भविष्य में उपयोग के लिए माइनस 80 डिग्री सेल्सियस पर संरक्षित करने से पहले इन हड्डियों को कीटाणुशोधन, डी-कैल्सीफिकेशन और संक्रामक रोग परीक्षण से गुजरना पड़ता है।
माइनस 80 डिग्री पर संरक्षित रखी जाती हैं हड्डियां
मेडिकल एजुकेशन में छात्रों के लिये जितना महत्व देहदान का है उतना ही हड्डियों का ज्ञान भी। आर्टीफीशियल इम्प्लांट का खर्च वहन करने में असमर्थ मरीजों के लिए बोन बैंक एक जीवनदान के समान है। गंभीर एक्सिडेंट या ट्रॉमा के मरीजों की भी कई बार हड्डी इतनी क्षतिग्रस्त हो जाती है कि वे जुड़ने की स्थिति में नहीं रहती है। ऐसे मरीजों की हड्डी को निकालकर प्रॉस्थेसिस का इस्तेमाल किया जाता है। बोन बैंक वाले फ्रिज में माइनस 80 डिग्री पर हड्डियों को संरक्षित रखा जा सकता है।इस तापमान पर हड्डियों में संक्रमण नहीं हो पाता है। यदि हड्डी की गुणवत्ता बेहतर हो तो उसे तीन साल तक संरक्षित किया जा सकता है।बोन बैंक में रखी हड्डियों को आसानी से जरूरतमंद मरीज में इंप्लांट किया जाता है।