दिल्ली चुनाव में अरविंद केजरीवाल के हारते ही कुमार विश्वास ने दिया तगड़ा रिएक्शन क्या बोल गए

झाबुआ/इंदौर। संजय जैन-स्टेट हेड।  दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों में आम आदमी पार्टी को करारी हार मिली है। आम आदमी पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया जैसे दिग्गज चुनाव हार गए है। 22 सीटों पर सिमटी आप और केजरीवाल की हार पर पूर्व नेता आम आदमी पार्टी व मशहूर विद्वान कवि डॉ.कुमार विश्वास ने अपने अंदाज में प्रतिक्रिया दी। उन्होंने महाभारत का जिक्र करते केजरीवाल का नाम लिए बगैर उनकी तुलना दुर्योधन से की। उन्होंने कहा कि जिसने अपने मित्र से छल किया हो,उसका सर्वनाश तो निश्चित है,इसके साथ ही उन्होंने शीशमहल कांड का भी जिक्र किया। उन्होंने केजरीवाल की हार पर दिल्ली के जनता को बधाई दी। भारतीय जनता पार्टी अपने नेतृत्व में सरकार बनाकर दिल्ली के जो पिछले 10 वर्ष  दुख से थे ,उन्हें दूर करें। मुझे उस आदमी से कोई सहानुभूति नहीं है जिसने पार्टी कार्यकर्ताओं के सपनों को कुचल दिया। दिल्ली अब उससे मुक्त हो चुकी है,उन्होंने कहा न्याय हुआ है।

सर्वनाश होना ही था

पूर्व नेता आम आदमी पार्टी कुमार विश्वास झारखंड में हुए कवि सम्मेलन में हिस्सा लेने पहुंचे थे,तभी उन्होंने दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को मिली करारी हार पर चुटकी लेना शुरू किया और केजरीवाल का नाम लिए बगैर जमकर तंज करे। विश्वास ने कहा कि लोग मुझसे पूछते हैं कि महाभारत क्यों पढ़ो...?उन्होंने कहा कि इसे इसलिए पढ़ो...?क्योंकि इससे जीवन में दिशा मिलेगी। मैंने पढ़ी थी,इसलिए मुझे दिशा मिली। इसके बाद कुमार विश्वास ने केजरीवाल का नाम लिए बिना उन पर हमला बोल कर कहा कि मुझे पता था कि अगर मित्र दुर्योधन निकल जाए तो कर्ण की तरह रथ पर मत बैठे रहो। वहां से नीचे उतरो,उसका तो सर्वनाश होना ही है। इसके साथ ही उन्होंने स्वाती मालिवाल के साथ हुई कथित मार-पीट को भी सामने रखते हुए केजरीवाल पर निशाना साधते हुए,इसकी तुलना द्रोपदी के चीरहरण से की। कुमार विश्वास ने कहा कि जिन्होंने अपने शीश महल में बुलाकर एक भावुक बच्ची का अपमान किया। जिन्होंने अपने शीश महल में बुलाकर एक स्त्री कोए सांसद तो छोड़ दीजिए, अपने सचिवों से पिटवाया,ये द्वापर में द्रोपदी की तरह मर्यादा गई। इसलिए आज हो या कल हो, ऐसे कुल का सर्वनाश तो निश्चित है। कुमार विश्वास ने कहा कि दिल्ली में कई जगह फिर आएंगे केजरीवाल के पोस्टर लगे हुए थे,इसी तरह एक पोस्टर तिहाड़ जेल के बाहर भी लगा हुआ था। उन्होंने कहा मुझे राघवेंद्र सरकार राम की कृपा मिली जिनका ये घर है, जिनकी कृपा से मैं यहां खड़ा हूं,मुझे मुझ पर कृष्ण कृपा हुई कि मैं इस निर्लज्ज सर्कस से बाहर आ सका,मैं उन सबसे भी अच्छे भविष्य की कामना करता हूं कि वो कोई गंदगी ना फैलाए  ,कहीं भी लौट जाए।

रो पड़ी मेरी पत्नी

उन्होंने कहा याय हुआ है,जब हमें जंगपुरा से मनीष सिसोदिया के हारने की खबर मिली। मेरी पत्नी जो गैर-राजनीतिक हैं,वह रो पड़ीं। क्योंकि मनीष ने उससे कहा था कि अभी मेरे भीतर दम है। सिसोदिया की हार से लोग सीखेंगे। यह पता चलेगा कि अहंकार का विलय होता है। यह उसकी ईश्वरीय हार है। दूसरे राजनीतिक दल इससे सीखेंगे और आगे अच्छा काम करेंगे।
 
अरविंद केजरीवाल से कहां गलती हो गई ? : अन्ना हजारे

आप पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल खुद अपनी सीट नई दिल्ली से हार गए। अन्ना हजारे ने दिल्ली चुनाव में हार की वजह  को लेकर कहा कि पहले वे कहते थे कि सारी जिंदगी एक छोटे से कमरे में रहेंगे और उसे कभी नहीं बदलेंगे। बाद में सुनने में आया कि उन्होंने शीश महल बना दिया है,यही उनकी सबसे बड़ी गलती है। खुशी बाहर नहीं,बल्कि अपने भीतर मिलती है। समाज के लिए अच्छा काम करने से व्यक्ति भीतर से खुश होता है। उन्हें यह बात समझ में नहीं आई। अगर यह बात समझ लेते हैं तो वे कभी शीश महल बनाने के बारे में नहीं सोचते।
 
मोदी सरकार के भ्रष्टाचार पर कभी क्यों नहीं बोले

शिवसेना यूबीटी सांसद संजय राउत ने कहा है कि अन्ना हजारे अरविंद केजरीवाल पर भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर सवाल उठा रहे हैं,लेकिन आखिर वह मोदी सरकार के भ्रष्टाचार पर कभी क्यों नहीं बोले ?

मीठा-मीठा गप-गप, और कड़वा-कड़वा थू-थू

गौरतलब है कि उपरोक्त टिप्पणियां को सुनकर पूर्व नेता आम आदमी पार्टी  विद्वान कुमार विश्वास और  विद्वान अन्ना हजारे की विद्वानता और विश्वासनीयता तो प्रश्न खड़ा होना लाजमी ही है। उल्लखनीय अन्ना आंदोलन से वे केजरीवाल के साथ कंधे कंधे मिलाकर खड़े रहे। आंदोलन के बाद आम पार्टी का पदार्पण हुआ था। उनकी यह जय-वीरू की जोड़ी लगातार 3 वर्षो तक एक दूसरे के साथ जुड़ी भी रही। हमेशा देखा जाता है कि राजनीति का नशा चढ़ने पर व्यक्ति अपने आप को कर्ता समझने लगता है। ठीक ऐसी स्थिति भी इस जय-वीरू की जोड़ीं मे देखी गयी े। परिणाम स्वरूप यह पक्की जोड़ी टूट कर एक दुसरे से पूर्ण रूप से अलग हो गयी। ज्ञात हो कि केजरीवाल से कुमार के अलग होने के बाद केजरीवाल ने रिकॉर्ड प्रचंड बहुमत से सतत 2 बार दिल्ली में अपनी सरकार भी बनायी और मुख्यमंत्री भी बने। वही दूसरी ओर देखा जाय कि यदि कुमार के बल बुते आप पार्टी चल रही थी,उनके पार्टी से अलग होने के बाद तो केजरीवाल पूरी तरह पस्त हो जाने थे,लेकिन केजरीवाल तो रिकॉर्ड प्रचंड बहुमत से 2 बार विजयी रहे। इससे यह तो स्पष्ट होता है कि विश्वास के जुड़े रहने या न जुड़े रहने से पार्टी को तो नाम मात्र की क्षति नही पहुची। खैर,राजनीति इसे तो कहते है। पूरा देश कुमार  विश्वास को बहुत बड़े विद्वान के रूप में देखता है और वही अब केजरीवाल को दस वर्षों के बाद हार का सामना करने पर अब जोर-शोर से सार्वजनिक मंचो से खुलकर इतनी अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल कर रहे है,तो इसे खिसयानी बिल्ली कहने पर अतिशयोक्ति नही होगी,ऐसा हमारा मानना है। या यह भी कह सकते है कि मीठा-मीठा गप-गप,और कड़वा-कड़वा थू थू.देश के विद्वान कवि से देश को यह उम्मीद कतई नही थी। मजेदार बात तो यह है कि विद्वान अन्ना हजारे भी इसी तर्ज पर कई वर्षों के बाद खुले आम केजरीवाल के खिलाफ  तंज कस रहे है। जबकि शुरू में ही आंदोलन के कार्यकर्ताओं को राजनीति में आने पर पाबंदी लगा देनी थी। हमारा तो जनता से एक ही प्रश्न है कि क्या इन दोनों विद्वानों को केजरीवाल के खिलाफ  ऐसी अमर्यादित और फुहड़ भाषा का इस्तेमाल करने की आवश्यकता थी ?