79 फीसदी पेरेंट्स अपने सपने बच्चों पर थोप देते हैं-91 फीसदी बोले-बचपन जीएं,परफेक्शन में न खोएं

झाबुआ/इंदौर। संजय जैन-स्टेट हेड। बेटा देखो वह तुम्हारी उम्र का है, पढ़ने में आगे रहता है। खेल व अन्य क्रिएटिविटी में भी उसका कोई मुकाबला नहीं है। उस रिश्तेदार को जानते हो उनका बेटा-बेटी भी तुमसे तेज है। क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसी बातों का बच्चों की मनोस्थिति पर कितना गंभीर असर पड़ता है।

अंधी होड़ में बच्चों से परफेक्शन की मांग

आगे निकलने की इस अंधी होड़ में बच्चों से परफेक्शन की मांग की जा रही है। इसका असर बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है। क्योंकि अभिभावक व परिजन उनकी तुलना दूसरे बच्चों से करते है तो कभी स्कूल में शिक्षक अन्य स्टूडेंट्स का भी उदाहरण गिनाते रहते है। हालांकि शिक्षकों को शासन द्वारा इस तरह की उदाहरण देने के लिए मना किया गया है।

बचपन मौज-मस्ती से जीने के लिए है

संघर्ष से सिद्धि टीम ने शहर में 50 लोगो का सर्वे किया जिसमे 91 फीसदी लोगों ने माना कि बचपन मौज-मस्ती से जीने के लिए है न कि परफेक्शन के फेर में उलझने के लिए। वहीं सर्वे में 79 फीसदी लोगों का कहना है कि माता-पिता अपने सपने बच्चों पर थोपते है,इसलिए कम उम्र से ही बच्चे दबाव में रहते है। जबकि 48 फीसदी का मानना है कि बेहतर परफॉर्म करने के लिए बच्चे भी प्रेशर में रहते है। सर्वे में शामिल लोगों का कहना है कि बच्चों के सामने हमेशा दूसरों की तारीफ  करते समय संयम बरतना चाहिए। क्योंकि ऐसा न हो कि बच्चे आक्रामक हो जाएं अथवा उनका मनोबल ही टूट जाए।

1-बच्चों पर दबाव किन कारणों से है

-36 प्रतिशत -घर-परिवार में दूसरे बच्चों से तुलना करना।

-35 प्रतिशत-स्कूल में भी छोटी उम्र से ही कॉम्पीटिशन

29 प्रतिशत-मौजूदा शैक्षणिक व्यवस्था

2-स्कूल व घर में बच्चों को कैसा वातावरण मिलना चाहिए?

-45 प्रतिशत-बच्चों को सर्वोत्तम परफॉर्म करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए

-47 प्रतिशत-दूसरे बच्चों से तुलना नहीं करनी चाहिए

-08 प्रतिशत-उपरोक्त दोनों

3-बच्चों के सामने दूसरे बच्चों की तारीफ  करना सही है

-11 प्रतिशत-एकदम सही

-49 प्रतिशत-सही नहीं

-40 प्रतिशत-संयम के साथ करें तारीफ

4-अत्याधिक प्रतियोगी माहौल से बच्चों का आत्मविश्वास कम हो जाता है

-70 प्रतिशत- हां

-30 प्रतिशत-नहीं

5-छोटी उम्र से ही बच्चों से परफेक्शन की उम्मीद सही है

-09 प्रतिशत-कम उम्र में ही बच्चों में परफेक्शन जरूरी है

-91 प्रतिशत-बचपन जीने के लिए है न कि परफेक्शन के लिए

6-कई माता-पिता अपने अधूरे सपने बच्चों पर थोपते है

79 प्रतिशत-हां

21 प्रतिशत-नहीं

(नोट-50 लोगों को सर्वे में शामिल किया गया था।)

बच्चों को घर में बेहतर माहौल द 

बच्चों का किस चीज में रूझान है वह माता-पिता को जानने चाहिए और उसी लाइन में ही उसे आगे बढ़ाए। बच्चों की लगातार तुलना करने अथवा बार-बार यह कहने पर वह अच्छा परफॉर्म नहीं दे पाते हैं। इससे वह आक्रामक और चिड़चिड़े हो जाते हैं। उम्र के साथ ही उनमें गुस्सा भी बढ़ जाता है। लगातार तुलना करने पर बच्चों निराश हो जाते हैं और वह चाहकर भी बेहतरीन प्रदर्शन नहीं कर पाते है। कुछ भी अच्छा करते समय उनके दिमाग में फर्स्ट आने का दबाव बना रहता है। बच्चों को घर में बेहतर माहौल दिया जाए।

डॉ.सचिन बामनिया-चाइल्ड स्पेशलिस्ट,जिला अस्पताल झाबुआ

बच्चों में हीन भावना पैदा होने लगती है

प्रत्येक बच्चे की अपनी रुचि और क्षमता होती है। माता-पिता व अभिभावकों को उनसे यह उम्मीद नहीं की जानी चाहिए कि वे दूसरों की तरह हर क्षेत्र में अच्छा करें। बच्चों की लगातार तुलना करने से बच्चों में हीन भावना पैदा होने लगती है और वे कम उम्र से ही आक्रामक होने लगते हैं और उसका असर उनकी उम्र पर भी पड़ता है।

हरीश कुंडल-सीएम राइज स्कूल प्राचार्य,झाबुआ