यातायात प्रबंधन प्रणाली पाठ्यक्रम का एक विषय बने-स्कूल में एक दिन की समझाइश यातायात जागरूकता के प्रति ऊंट के मुंह में जीरे के बराब

यातायात माह के साथ शुरू हुआ औपचारिकताओं का दौर-आला अफसर केवल मात्र उद्घाटन और समापन पर ही अभियान में शरीक न हो
झाबुआ। रिंकेश बैरागी-विशेष संवाददाता। जमाने गुजर गए,निजाम भी बदले,लेकिन यातायात व्यवस्था जस की तस है। जिला मुख्यालय पर ही ट्रैफिक व्यवस्था बुरी तरह से चरमराई हुई है। हर रोज जाम,जाम और जाम। एक तरफ जहां जाम लोगों के लिए दिक्कतों का सबब रहता है,वहीं ताबड़तोड़ सड़क दुर्घटनाएं लोगों के लिए मौत परोस रही हैं। ट्रैफिक के प्रति आम लोगों का जागरूक न होने का रवैया भी हादसों के लिए जिम्मेदार है। इसके अलावा शहर में विभिन्न स्थानों पर पार्किंग की उचित व्यवस्था न होना और ट्रैफिक पुलिसकर्मियों की किल्लत भी मुख्य वजह है। दुकानों के बाहर फैले अतिक्रमण और तिराहे-चौराहों से नदारद पुलिसकर्मियों की वजह से दिक्कतें और बढ़ रही है। सड़क हादसे अक्सर लोगो की जिंदगी पर भारी ही पड़ते है। भारत में सड़क हादसों में होने वाली मौतों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। सड़क हादसों पर सरकार से किये जा रहे अधिकतर प्रयास असफलता की सुची को बेहद लंबी भी कर रहे हैं। परिवहन की परिभाषा और यातायात नियमों की जागरूकता शून्य के आसपास पहुचती जा रही है,ऐसा मेरा मानना है।
हो जाता है,पूरा परिवार पलभर में पूरी तरह से तहस नहस
परिवहन के प्रकारो और यातायात नियमो की जानकारी से अधिकतर अनभिज्ञ नागरिक सड़क हादसों में अपनी जान सतत गवां रहे है। जिसके ऊपर परिवार की प्रमुखता से जिम्मेदारी होती है ऊ सकी हादसे में होने वाली मौत से पूरा परिवार पलभर में पूरी तरह से तहस नहस तो हो ही जाता है,साथ ही परिवार आर्थिक रुप से असक्षम होकर असमय अनेक समस्याओं से घिर जाता हैं। ज्ञात हो कि यदि परिवार का मुखिया सड़क हादसे के चलते काल का ग्रास बन जाता है,तब देश और परिवार को क्षति पहुंचने के साथ-साथ अर्थव्यवस्था को भी भारी नुकसान उठाना पड़ता है।
समझाईश कार्यक्रम पूर्ण रुप से निर्रथक ही प्रतित हो रहा
राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा माह की1 जनवरी से शुरु हो चुका है। केन्द्र और राज्य स्तर पर सड़क सुरक्षा के प्रति जनता के मध्य जागरुकता कार्यक्रम की सूची तो बहुत लंबी है। जिला स्तर से लेकर तहसील स्तर पर यातायात प्रमुख स्कूली बच्चों को एक घंटे तक यातायात नियमो के बारे में समझाइस दे रहे हैं और यातायात प्रमुख मान लेते है कि उन्होंने यातायात नियमो के परिपालन करवाने के क्षेत्र में बहुत ही उन्नत कार्य कर लिया है। गौरतलब है कि यातायात पुलिस का यह समझाईश कार्यक्रम पूर्ण रुप से निर्रथक ही प्रतित हो रहा है। देखा जाय तो मात्र एक दिन में ही कोई भी विद्यार्थी एक घंटे की समझाइश को ग्रहण ही नहीं कर पाता है और यदि ग्रहण कर भी लेता तो अगले कुछ घंटे के पश्चात उसके मस्तिष्क से पुलिस द्वारा बताए गए नियम-कानून अस्थिर विचार की तरह पूरी गायब हो जाते हैं।
यातायात के नियम और कानून को पाठ्यक्रम में प्राथमिकता से सम्मिलित करना चाहिए
विद्यार्थियों के मन मस्तिष्क में यातायात नियमों के प्रति जागरुकता बन जाए और वें परिवहन की परिभाषा को समझ जाए इसके लिए सरकार को यातायात के नियम कानून को पाठ्यक्रम में प्राथमिकता से सम्मिलित करना चाहिए,ऐसा हमारा मानना है। आवश्यकता है कि कक्षा 6 वीं से 12 तक सामाजिक विज्ञान या हिंदी विषय में एक पाठ यातायात नियमों की जागरूकता पर भी हो,जिसके प्रश्न परीक्षा में भी पुछे जाए। इससे इतना तो होगा की बच्चों में यातायात नियमो की समझ आने लगेगी और आने वाली नई पीढ़ी फिर ऐसी आएगी कि जिसे यातायात नियमो का सम्पूर्ण रूप से ज्ञान होगा। सरकार को इस पर अवश्य विचार करना चाहिए कि यातायात नियमों को पाठ्यक्रम में सम्मिलित करे,जिससे आने वाली पीढ़ी यातायात के प्रति जागरुक हो और देश में होने वाली दुर्घटनाओं में गिरावट आ जाये। यातायात जागरुकता कार्यक्रम और समझाईश के साथ परिवहन की परिभाषा समझाने के लिए स्कूलो में एक दिन की कक्षा कोई मायने नहीं रखती है। देखा जाए तो जागरूकता के विषय में यह प्रयास विद्यार्थियों के लिए ऊंट के मुंह में जीरा रखने के समान है।
हादसों के यह मुख्य कारण
सूत्रों नुसार देशभर में पिछले कुछ ही वर्षों में सड़क दुर्घटना में लगभग 15 लाख से अधिक लोगों ने अपनी जान गंवा बैठे है। सड़क की खराब स्थिति, ओवरलोड वाहनों की आवाजाही,सवारी बसों का अनिश्चित समय और स्थान पर असमय रुक जाना,वाहनों की अनियंत्रित गति,छोटे सवारी वाहनों का नियमों को तोड़कर लहराते हुए वाहन चलाना,बाइकर्स का बेहिसाब गति से चलना, मदिरापान कर या करते हुए वाहन चलाना और साथ ही मोबाइल फोन पर बात करते हुए वाहन चलाना आदि इन मुख्य कारणों से ही अधिकांश दुर्घटनाएं होती है और कई बार तो घायल व्यक्ति मौके पर ही दम तोड़ देता है। कुछ हादसें तो ऐसे भी होते है जहां दोपहिया वाहन और पैदल चलने वालो की दुर्घटना में मौत हो जाती है। 60 से 80 प्रतिशत सड़क हादसे ओवर स्पीड,रॉग साइड चलना,अनियंत्रित गति से ओवरटेक करना जैसे बहुत से यातायात के नियमों के उल्लघंन से ही होते है। 75 प्रतिशत बाइकर्स जो दुर्घटना के शिकार हेलमेट नहीं लगाने के कारण होते है।
छुड़वा लेता है,अपने आप को बड़ी आसानी से
सरकार के नाम मात्र के प्रयासो से समस्याओं का समाधान सफलता के आंगन तक भी नहीं पहुंच पाता है या यह भी कह सकते है कि वह समाधान पंगु हो जाता है। बहुत से कानून बनाने के बाद भी तंत्र में कहीं न कहीं कमी रह ही जाती है। चिंतनीय बात तो यह है कि यदि कानून के अनुरुप यातायात पुलिस किसी को पकड़ भी लेती है तो वह नेता मंत्री या रसुखदार को फोन लगाकर अपने आप को बड़ी आसानी से छुड़वा लेता है।
इन बिंदुओं पर किया जाए सुधार
-आला अफसर केवल उद्घाटन और समापन पर ही अभियान में शरीक न हों,बल्कि पूरे माह जगह-जगह स्वयं अभियान की गतिविधियों का जायजा लें।
-सड़कों की हालत सुधारी जाए।
-औद्योगिक इकाईयों और ट्रांसपोर्टरों से जुड़े लोगों व वाहन चालकों को भी यातायात नियमों का पालन करने के लिए प्रेरित करें।
-ट्रैफिक लाइट,जेब्रा क्रॉसिंग आदि हों।
-मोटर वाहन एक्ट का उल्लंघन करने वालों पर कार्रवाई हो।
-जनता को जागरूक करने के लिए जमीनी स्तर पर प्रयास हों।
-शहर में पार्किंग की उचित व्यवस्था हो।
-ट्रैफिक पुलिसकर्मियों की तादाद में इजाफा हो।
-अतिक्रमण हटाकर अतिक्रमणकारियों पर कार्रवाई हो।
यातायात माह में होने वाली औपचारिकताएं
-कुछ सौ पंपलेट चौराहों-तिराहों पर बांट दिए जाते हैं और लाउडस्पीकरों से चुनिंदा शोर-शराबे वाले स्थानों पर प्रचार होता है।
-अधिकांश इलाकों में पुलिस यातायात माह के नाम पर दुपहिया वाहन चालकों का शोषण,उनसे अभद्रता और अवैध उगाही करती है।
-चार पहिया और तीन पहिया वाहनों के विरूद्ध कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जाती,जबकि अधिकांश हादसे बड़े वाहनों की लापरवाही से ही होते हैं।
-यातायात माह के दौरान अतिक्रमण हटाकर यातायात व्यवस्था सुचारू करने का कोई प्रयास नहीं किया जाता। किसी अन्य विभाग को इस अभियान से नहीं जोड़ने के कारण यह केवल यातायात पुलिस का अभियान मात्र बन चुका है।